बाल कहानी : बया की दावत

अचानक ही नन्हीं बया को धुन सवार हुई कि वह भी दावत देगी। नीलू मोर, भूरी चील, लंबू सारस, शानू बगुला सब अब तक दावत दे चुके थे। नन्हीं सोचती कि सब मिल जुलकर खाते है। मौज मनाते हैं। तो कितना आनंद आता हैं। क्यों न वह किसी एक ऐसी ही दावत दे डाले।

By Ghanshyam
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बाल कहानी (Hindi Kids Story)  बया की दावत :

बाल कहानी (Hindi Kids Story)  बया की दावत : अचानक ही नन्हीं बया को धुन सवार हुई कि वह भी दावत देगी। नीलू मोर, भूरी चील, लंबू सारस, शानू बगुला सब अब तक दावत दे चुके थे। नन्हीं सोचती कि सब मिल जुलकर खाते है। मौज मनाते हैं। तो कितना आनंद आता हैं। क्यों न वह किसी एक ऐसी ही दावत दे डाले।

उस दिन वह सबको निमंत्रण भी दे आई कि शाम को सब उसके घर आएँ पर खाने में क्या रखा जाए उसने सोचा एक सा मेन्यू तो सबके लिए हो नहीं सकता। सभी पक्षियों की रूचियाँ भिन्न भिन्न हें। काफी सोचकर उसने सबकी पसंद का खाना इक्ट्ठा किया। छोटे मोटे कीड़े मकौडे़ मरी हुई मछलियाँ, हरे मटर के दाने, मुलायम घास, मीठे मीठे फल दिन भर मेहनत करते करते बेचारी नन्हीं काफी थक गई।

अब शाम होने ही वाली थी। सब लोग आते होंगे। पर बैठेगे कहाँ यह तो अब तक सोचा ही नहीं। नन्हीं का घर तो बहुत छोटा है। इतने बड़े बड़े पक्षी उसमें कैसे घुसेंगे। वह अब धबराने लगी थी। कहीं उसकी खिल्ली न उड़े कि बिना सोचे समझे ही सबको न्यौता दे आई।

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पेड़ की डाल पर बैठे बैठे नन्हीं उदास हो गई। नीचे सारा खाना इक्ट्ठा किया हुआ रखा था। तभी उसकी दृष्टि सामने गई। बड़े बरगद के नीचे साफ सुथरी जगह थी। छायादार भी। हाँ वहीं ठीक रहेगा। दौड़कर नन्हीं ने वहाँ कंकड़ पत्थर कांटे वगैरह थे वो साफ कर दिए। मेहमान भी आने शुरू हो गए थे। भूरी चील ने नई पोशाक पहनी थी। नीलू मोर शान से गर्दन उठाए आ रहा था।

तोता राम और कबूतर आपसी गपशप में मशगूल थे। नन्हीं दौड़ दौड़कर सबको बिठाती रही। भूरी चील गर्दन मटका मटका कर अपनी पोशाक को ही देख रही थी कबूतर की गुटरगूं अब तक खत्म नहीं हुई थी। गोरैया किसी वजह से आ नहीं पाई थी। इसीलिए उसकी निन्दा करने का उन्हें आज अच्छा अवसर मिल गया था।

अब दावत शुरू की जाए। जब तक कुछ समय हो गया तो नन्हीं ने सोचा। पर सारे पक्षी तो मेहमान की तरह सजे बैठे हैं। वह अकेली ही उठी। सामने पेड़ के नीचे गई और एक पत्ते के दाये में कीड़े मकौड़े रखकर ले आई। वह दाने उसने चील के सामने रख दिया था। चील ने एक नजर डाली उस दानेे पर फिर औरों की तरफ देखा।

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नन्हीं अकेली ही फिर उड़कर गई। मछलियाँ लाकर बगुले के सामने रखी, फिर कबूतर के लिए ज्वार के दाने, तोता राम के लिए फल। दौड़ दौड़कर वह थकती जा रही थी। पर कोई पक्षी अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा था।

अचानक ही कबूतर तोता राम से बोला। नन्हीं को सोच समझकर ही सबको बुलाना था। जब इन्तजाम नहीं कर सकती थी तो क्या जरूरत थी सबको बुलाने की। तुम ठीक कहते हो, तोता राम ने एक बड़ा सा सेब उठाकर चोंच के नीचे दबा लिया।

हम अगर काम करेंगे तो हमारे कपड़े गंदे नहीं हो जायंेंगे। हम तो मेहमान हैं चील ने अपनी सफाई देनी चाही। पर सब दूसरे ही क्षण चैंक उठे। यह नीलू मोर उठकर कहाँ जा रहा है। देखा वह चुपचाप जाकर नन्हीं से कह रहा था। तुम अब काफी थक चुकी हो। बैठो हम लोग काम कर लेंगे।

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फिर तो नीलकंठ भी उठकर चला गया। और सारस भी पीछे पीछे बुलबुल  थी। देखते-देखते ही सारे पक्षी काम में जुट गए थे। अब तो चील भी उठी और फिर कबूतर और तोताराम भी कोयल और मैना भी, सब दौड़ दौड़ कर सामान सजाते रहे। फिर सबने मिलकर दावत उड़ाई। नन्हीं की तारीफ की बेचारी ने इतनी मेहनत जो की थी।

इसके बाद और कार्यक्रम हुए। भूरी चील ने नाच दिखाया, कबूतर ने गुटर गूँ करके सबको हँसाया, कोयल और मैना ने गीत गाए।

सब सोच रहे थे कि आज की यह दावत बहुत अच्छी रही। वे नन्हीं को धन्यवाद देते हुए लौटे।

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