लोटपोट की शिक्षाप्रद कहानी : दिव्यस्वप्न

लोटपोट की शिक्षाप्रद कहानी : दिव्यस्वप्न :- विजय अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। इसी कारण सब उसकी प्रशंसा करते थे परन्तु पिछले दस 15 दिन से वह बहुत गुमसुम तथा कहीं खोया हुआ सा रहता था। पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता था। अक्सर पढ़ते-पढ़ते वह सोचने लगता था। उसकी इस बार का परिणाम परीक्षा में कम नम्बर के रूप में सामने आया तो वह सन्न रह गया।

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Instructive Story of Lotpot Divyaswapna

लोटपोट की शिक्षाप्रद कहानी : दिव्यस्वप्न :- विजय अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। इसी कारण सब उसकी प्रशंसा करते थे परन्तु पिछले दस 15 दिन से वह बहुत गुमसुम तथा कहीं खोया हुआ सा रहता था। पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता था। अक्सर पढ़ते-पढ़ते वह सोचने लगता था। उसकी इस बार का परिणाम परीक्षा में कम नम्बर के रूप में सामने आया तो वह सन्न रह गया।

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अमर विजय की ही कक्षा में पढ़ता था। विजय के कम नम्बर देखकर वह भी हैरान था।

क्या बात है विजय इस बार कम नम्बर कैसे हो गये? पिछले कुछ दिनों से तुम परेशान लग रहे हो। हाँ यार पता नहीं मुझे क्या हो गया है? जब भी मैं पढ़ने बैठता हूँ वैसे मुझे लगता है कि मैं पढ़ाई पूरी करने के बाद अफसर बनूंगा। और फिर मैं वही कल्पना करने लगता हूँ।

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विजय बोला, कभी किसी खिलाड़ी या बड़े व्यक्ति के विषय में पढ़कर या देखकर मैं स्वयं वैसा बनने की सोचने लग जाता हूँ

हूँ तो ये बात हैं अमर ने गम्भीरता पूर्वक कहा मतलब तुम्हें दिव्यस्वप्न देखने की आदत हो गई है।

दिव्यस्वप्न वो क्या होता है? विजय ने पूछा।

दिन में सपने देखने को ही दिव्यस्वप्न कहते है तुम पढ़ते समय अफसर बनने की सोचते हो मगर जब तक उसके लिए तुम ईमानदारी से मेहनत नहीं करोगें तो सफल कैसे होगें? अमर ने समझाया।

मैं जानता हूँ ये सब मगर फिर भी इस आदत को छुड़ा नहीं पाता। जब भी खाली बैठता हूँ इस तरह के ख्याल मुझे घेर लेते हैं। विजय गम्भीर स्वर में बोला, मैं क्या करूं कुछ समझ में नहीं आता।

मैं समझ गया तुम्हारी इस पेरशानी का कारण अमर खुश होकर बोला।

वो क्या? विजय ने पूछा। तुमने सुना ही होगा कि खाली दिमाग, शैतान का घर होता है। मतलब? अमर की बात न समझ आने पर विजय ने पूछा।

यानि तुम खाली रहते हो इसलिए तुम्हारे दिमाग में तरह-तरह के विचार आते हैं। जिनके पास कोई काम नहीं रहता उनका दिमाग खुराफाती कामों के बारे में सोचने लगता है यही तुम्हारी परेशानी है। विजय के कन्धे पर हाथ रखकर अमर बोला।

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हाँ ये तो है जब भी मैं कभी खाली रहता हूँ तभी ऐसा लगता है। तुम्ही बताओ मैं क्या करूं?

विजय परेशानी से बोला, मम्मी पापा रिपोर्ट कार्ड देखकर बहुत गुस्सा होंगे मुझे तो डर लग रहा है।

डरने की कोई बात नहीं। ये तो मासिक परीक्षा ही थी। हाँ तुम उन्हें वार्षिक परीक्षा में मेहनत कर अच्छे नम्बर लाने का वादा करोगे तो वे कुछ नहीं कहेेंगे। अब तुम्हें इस आदत से छुटकारा पाना होगा। विजय का डर दूर करते हुए अमर बोला, तुम्हें अपना हर काम करने के लिये समय को बांटना होगा, फिर तुम सब काम समय से कर सकोगे और काम करते समय फालतू बातें सोचने का समय नहीं मिलेगा तो यह आदत खुद छूट जायेगी। तभी ट्रिन.... ट्रिन... घण्टी बजने की आवाज सुनकर दोनों अपनी कक्षा में चल दिये, लंच टाईम खत्म हो गया था।

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अमर की बातों को जब विजय ने ध्यान से सोचा तो उसे सही लगी। और उसने अमर के कहे अनुसार पढ़ाई, खेल तथा अन्य कामों के समय को बांट दिया। अब वह हर काम समय से करता। खाली समय न होने के कारण जल्दी ही उसे अपनी दिव्यस्वप्न की आदत से छुटकारा मिल गया, वह पढ़ाई में पूरी तरह ध्यान देने लगा। परीक्षायें नजदीक आ गई थी। विजय और अमर दोनों साथ साथ पढ़ाई करते तथा एक दूसरे की कठिनाईयों को दूर करते। विजय के मम्मी पापा उन्हें गम्भीरतापूर्वक पढ़ते देख खुश थे।

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जब परीक्षा परिणाम अखबार में प्रकाशित हुआ तो विजय की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वह और अमर दोनों फस्र्ट डिवीजन में पास हुए थे। विजय अखबार लेकर सीधा अमर के पास पहुँचा और उसे धन्यवाद देते हुए बोला, ये सब तुम्हारे कारण है दोस्त वर्ना मैं तो फेल ही हो जाता, अपने दिवास्वप्नों के कारण।

मैंने कुछ नहीं किया। यह तो सब तुम्हारी ईमानदारी से की गई मेहनत का फल है। स्वप्न देखना बुरा नहीं है मगर सपनों को साकार करने के लिए मेहनत बहुत जरूरी है, केवल सपने देखने भर से वे कभी साकार नहीं हो सकते। अमर खुश होकर बोला, मुझे विश्वास है कि अब तुम अपना सपना जरूर वास्तविक रूप से पुरा कर पाओगे।

हाँ क्योंकि अब मेरे सपने विश्वास और मेहनत की बुनियाद पर होंगे दिव्यस्वप्न नहीं। विजय आत्मविश्वास के साथ बोला, अब क्या इस खुशी के अवसर पर मुँह मीठा भी नहीं कराओगे।

हाँ... हाँ... क्यों नहीं मैं तो भूल ही गया था आओ अंदर बैठते हैं। दोनों खुशी से अंदर चले गए।

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