Category "Lotpot Personality"

26Apr2023

सचिन तेंदुलकर पूरे पचास वर्ष के हो गए, यह वो क्रिकेटर हैं जिन्होंने विश्व के लाखों लोगों का दिल जीता है। उन्होंने अपने खेल करियर में कई ऐसी आश्चर्यजनक उपलब्धियां हासिल की हैं जो अब तक कोई भी क्रिकेटर नहीं कर पाया है। सचिन भारत की क्रिकेट टीम की रीढ़ और आत्मा की तरह हैं तथा उन्होंने कई रिकॉर्ड तोड़े हैं।

12Apr2023

भारतीय बिजनेस टाइकून रतन टाटा (Ratan Tata) अपने सफल करियर और खुले हाथों से परोपकार करने के लिए जाने जाते हैं। एक बार उनसे एक रेडिओ इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि उनके जीवन में सबसे ज्यादा खुशी देने वाले पल कौन से थे?

29Mar2023

योगी आदित्यनाथ को कौन नहीं जानता? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी अदित्यनाथ भारत में एक सुप्रसिद्ध हस्ती हैं। उन्होंने अपनी अनुशासित दिनचर्या, योग के प्रति निष्ठा, शैक्षणिक योग्यता और देश के विकास, सुरक्षा तथा खुशहाली में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए खूब ख्याति अर्जित की है। ये वो सन्यासी हैं जिनके बारे में दुनिया सब कुछ जानना चाहती है

14Feb2023

Chilukuri Santhamma : मन में अगर हिम्मत, अनुशासन, समर्पण, दृढ़ संकल्प और मेहनत करने की भावना हो तो इंसान किसी भी उम्र में कामयाबी पा सकता है। विशाखापट्टनम की एक 95 वर्षीया बुजुर्ग महिला, प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा, आंध्र प्रदेश के विजय नगरम स्थित सेंचुरियन यूनिवर्सिटी में मेडिकल फिजिक्स, रेडियोलॉजी और अनिस्थिशिया पढ़ाने के लिए रोज बस द्वारा 60 किलोमीटर की यात्रा करती हैं। जिस उम्र में अक्सर इंसान तरह तरह की व्याधियों से ग्रस्त होकर, बिस्तर पकड़ चुके होते हैं या दुनिया छोड़ चुके होते हैं उस उम्र में यह बुजुर्ग दादी जी गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के मानदण्डों पर खरी उतर रही है।

आठ मार्च 1929 को मछलीपट्टनम् में जन्मी संथम्मा जब सिर्फ पाँच महीने की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया था । उनके मामा ने ही उनका पालन पोषण किया।  संथम्मा बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। उन्होंने बहुत अच्छे नंबरों से स्कूल पास करने के बाद  एविएन कॉलेज से इंटरमीडिएट की और फिर बीएससी और एमएससी  (ऑनर्स) आंध्र यूनिवर्सिटी से पूरी की। संथम्मा ने आंध्र विश्वविद्यालय से माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी  में डीएससी (पीएचडी के समकक्ष) भी की है । 1945 में जब वे इंटरमीडिएट की छात्रा थी तब  महाराजा विक्रम देव वर्मा ने उन्हें फिजिक्स में अव्वल होने के कारण स्वर्ण पदक भी दिया था।

संथम्मा, ब्रिटिश रॉयल सोसाइटी के मार्गदर्शन में, डॉक्टर ऑफ साइंस पूरा करने वाली पहली महिला बनी। उन्होंने डॉक्टर रंग धामा राव के निर्देश पर शोध की पढ़ाई की थी । 1947 में पीएचडी करने के बाद संथम्मा  एक व्याख्याता के रूप में कॉलेज ऑफ साइंस आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हुई। पिछले सत्तर सालों से वे छात्र छात्राओं को फिजिक्स पढ़ा रहीं हैं।

वे लेक्चरर भी रही, आविष्कारक भी और प्रोफेसर भी। उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान पारिषद (सीएसआईआर), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जैसे केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में जाँच प्रभारी का काम भी किया था । हालांकि वे 1989 में रिटायर हो गई थी लेकिन सतत काम  करते रहने के जुनून के कारण वे ऑनररी लेक्चरर के रूप में फिर से आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हो गई। वे रोज़ सुबह चार बजे उठ जाती हैं और दिन भर जो भी उन्हें पढ़ाना हो, उसके नोट्स बनाती है। वे एक दिन में छह क्लासेस लेती है।

घुटनों के रिप्लेसमेंट सर्जरी के बावजूद संथम्मा दो छड़ियों के सहारे यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जाती हैं। उनके स्टूडेंट्स उनका बहुत सम्मान करते हैं और कभी उनका क्लास मिस नहीं करते। संथम्मा भी रोज़ समय पर युनिवर्सिटी पहुंच जाती है। वे कहती हैं हर इंसान को अपना दिल और दिमाग स्वस्थ रखना चाहिए और हर उम्र और हर परिस्थिति में अपने सामर्थ्य अनुसार काम करते रहना चाहिए और कभी खाली नहीं बैठना चाहिए। चिलुकुरी  संथम्मा ने भागवत गीता को अँग्रेजी और तेलुगु भाषा में अनुवाद भी किया। आज वे पूरी दुनिया में कर्मठता की एक मिसाल बन गई है। **

★सुलेना मजुमदार अरोरा★

18Jan2023

भारत की एक और बेटी, कैप्टन शिवा चौहान अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर आसमान की बुलंदी छू रही है। शिवा वो प्रथम महिला सैन्य अधिकारी है जो सियाचिन की कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी करने के लिए तैनात है। उन्होंने सियाचिन बैटल स्कूल में, ऑफिसर्स तथा इंडियन आर्मी के पुरुषों के साथ ट्रेनिंग ली।

24Nov2022

सोते हुए सपने देखने से, सपने पूरे नहीं होते , हमें जागते हुए सपने देखना चाहिए। ऐसे ही एक बच्चा था जो जागकर सपना देखता था। नाम था उसका, कोनोसुके मात्सुशिता , जिसका जन्म 1894 में जापान के वाकायमा प्रांत में एक अच्छे घराने में हुआ था।

18Oct2022

आज जहां युवा और बच्चे थोड़ी सी मेहनत करके थक हार जाते हैं वहीं हमारे देश की एक पीढ़ी अभी भी ऐसी है जो युवाओं को भी अपनी चुस्ती स्फूर्ति से पछाड़ सकते हैं। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के नजफगढ देहात के मालिकपुर की रहने वाली 94 वर्ष की दादी  भगवानी देवी डागर की जो अपनी सारी तकलीफ़ों को दूर भगाकर ऐसे ऐसे पॉसिटिव कार्य कर रही है जिससे उनके गांव का ही नहीं बल्कि देश का नाम रोशन हो रहा है।

11Oct2022

सशस्त्र बलों को प्रदान की जाने वाली सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है परमवीर चक्र। भारत के स्वतंत्र होने से लेकर आज तक केवल इक्कीस वीरता पुरस्कार प्रदान की गई जिसमें से चौदह वीरों को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्राप्त हुआ। लेकिन, भारतीय वायुसेना को अब तक सिर्फ एक परमवीर चक्र प्राप्त हुआ जो 1971 के युद्ध में फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को उनके वीरगति प्राप्त होने के पश्चात दिया गया।

2Oct2022

भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री उन चंद लोगों में से गिने जाते हैं जो बेहद साधारण परिवार से होने के बावजूद देश के प्रधानमंत्री बने। उनका जन्मदिन दो अक्टूबर, महात्मा गांधी जी के साथ मनाया जाता है। दो अक्तूबर 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में जन्में लाल बहादुर शास्त्री, साधारण, कद काठी के होने के बावजूद, अपनी सरलता, सच्चाई, जीवन की श्रेष्ठता, उच्च विचार, हर धर्म, हर वर्ग और हर भाषा के प्रति सम्मान तथा प्यार के कारण सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में मानवता के प्रतीक माने जाते हैं हैं। उनके द्वारा दिया गया नारा ‘जय जवान, जय किसान’ भारत की उन्नति का सशक्त मशाल बनकर विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ और देश भक्ति का प्रतीक बन गया।

1Oct2022

भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) के बारे में तो पूरी दुनिया जानती है, स्कूल कॉलेज में भी गांधी जी के बारे में बहुत कुछ पढ़ाया गया है।

आइए जानते हैं बापूजी की कुछ सुनी अनसुनी बातें

गांधीजी को अहिंसा का पुजारी माना जाता है। उन्होंने अपने अहिंसा आंदोलन से देश को अंग्रेज़ो से आज़ाद किया था। दरअसल जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थोड़े समय के लिए रहे थे तब उन्होंने 1899 के एंग्लो बोइर युद्व  की भयानक त्रासदी देखी थी, उसका उनपर इतना असर पड़ा कि उन्होंने अहिंसा के रास्ते पर खुद चलने और सबको अहिंसा का रास्ता दिखाने का निश्चय कर लिया था।

गाँधी जी समय के बड़े पाबंद थे। वे अपने अगले दिन के कार्यक्रमों का टाइम टेबल पहले ही बना लेते और उसी के अनुसार चलते थे। अगर किसी की घड़ी पाँच मिनट भी फास्ट या स्लो होता, वे उसे तुरंत घड़ी ठीक करने की सलाह देते। एक बार बापू जी किसी काम से महाराष्ट्र स्थित मिरज आए। वहां काम खत्म करके वे कहीं और जाना चाहते थे, लेकिन वहाँ के स्थानीय लोग चाहते थे कि वे कुछ दिन और उस गांव में रहे। इसलिए बहाना बनाया की गाड़ी खराब हो गई इसलिए उन्हें दो दिन और रुकना पड़ेगा। लेकिन गांधी जी नहीं माने और पैदल ही निकल पड़े। तब आखिर लोगों को उनके लिए गाड़ी लानी ही पड़ी। गांधीजी अपना सब सामान सही जगह पर बहुत सहेज कर रखते थे। लेकिन एक दिन उन्हें अपनी पेंसिल सही जगह नहीं मिली। उनकी चिंता और बेचैनी देख घरवालों ने कहा कि यह तो छोटी सी बात है, एक पेंसिल खरीद लाते है, लेकिन गांधीजी ने कहा कि बात पेंसिल की नहीं है, लापरवाही और व्यवस्था की कमी की है। जीवन व्यवस्थित होना ही चाहिए।

बापूजी को बेवजह खर्च करना बिल्कुल पसंद नहीं था, तन ढकने के लिए घुटने तक धोती, एक  खद्दर का गमछा, और दो वक्त का सादा थोड़ा सा भोजन के सिवाय वे अपने ऊपर एक पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं करते थे। वे साफ़ सफाई पर बहुत ध्यान देते थे और अपने कपड़ों से लेकर घर और बाहर की सफाई भी खुद करना पसंद करते थे।

गांघी जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सत्रह बार अनशन किया, उनका सबसे लंबा अनशन 21 दिन का था।

गांधीजी ने जो सिविल राइट्स का आंदोलन शुरू किया था वो चार महाद्वीपों के साथ साथ अन्य बारह देशों में भी पाला गया था। गांधीजी को स्पोर्ट्स में गहरी रुचि थी, उन्होंने प्रिटोरिया, जोहानसबर्ग और डरबन में भी तीन फुटबॉल क्लब शुरू किया था। गांधी जी को दुनिया के सभी देशों ने महान संत और शांति के पुजारी के रूप में स्वीकर किया। यहां तक कि गाँधी जी ने भारत को जिस ब्रिटेन से आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के दांत खट्टे किए, उसी ब्रिटेन ने गांधीजी के सम्मान में, उनके निधन के इक्कीस वर्ष बाद, उनके नाम से डाक टिकट जारी किया और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि गांधीजी जीवन भर अहिंसा के पुजारी रहे और उन्होंने सबको अहिंसा का रास्ता दिखाया, लेकिन उन्हें कभी शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं मिला हालांकि पाँच बार वे इस नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेटेड जरूर किया गया।

★सुलेना मजुमदार अरोरा ★.