Moral Story: गुरू गिलहरी
घर-बार और राज-परिवार छोड़कर सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में स्वयं को समर्पित कर दिया, तो स्वाभाविक ही था कि अनेकों कष्ट, कठिनाईयों से मुकाबला करना पड़ा।
घर-बार और राज-परिवार छोड़कर सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में स्वयं को समर्पित कर दिया, तो स्वाभाविक ही था कि अनेकों कष्ट, कठिनाईयों से मुकाबला करना पड़ा।
एक यवन राजा स्वामी रामानन्द जी के पास अक्सर आता था। वह बड़े सोच में था कि प्रायश्चित से किस प्रकार मन की शुद्ध हो जाती है? एक दिन उससे न रहा गया।
दामोदर जैसे ही हाकी लेकर मैदान में घुसा, असलम तेजी से उसके पास आकर बोला “खिलाड़ी तो पूरे हैं, तुम बाहर बैठो।” दामोदर चुपचाप मैदान के बाहर आ गया। उसकी बड़ी इच्छा थी कि कालेज टीम के चयन के लिए हो रहे हॉकी मैचों में वह भी खेले।
किसी नगर में एक विधवा रहती थी। उसका बारह वर्ष का एक लड़का था। बड़ा ही होनहार और कुशाग्र बुद्धि मां चाहती थी 'मेरा बेटा पढ़-लिखकर खूब नाम कमाये।' इसलिए उसे एक अच्छी पाठशाला में पढ़ने के लिए भेज दिया।
स्वर्ण नगरी के राजा नरपत सिंह बहुत ही सहनशील और न्यायप्रिय थे। वे सदा अपनी जनता के विषय में ही सोचते रहते थे। उन्होनें अपने राज्य में बहुत सी सुख-सुविधाएं भी लोगों को दे रखी थी।
नन्हा नन्दू एक अच्छा चित्रकार था। अभी उसे न पढ़ना आता था, न लिखना, पर उसने चित्र बनाना सीख लिया था। जब भी मम्मी या पापा बाजार जाते नन्दू अपनी फरमाइशों की एक लम्बी लिस्ट उन्हें पकड़ा देता।
अपनी मातृभूमि और अपने स्वामी के साथ विश्वासघात करने के कारण कौशाम्बी राज के मंत्री शिवलाल को अपने दो जवान सैनिक पुत्रों के साथ-साथ अपनी भी जान गंवानी पड़ी। और आखिर कोशाम्बी राजा का विनाश हुआ।