शहीद भगत सिंह की कलम से...

Shaheed Bhagat Singh : जिन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है... दूसरों के कन्घों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं। जरूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पथ नहीं था।

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From the pen of Shaheed Bhagat Singh...

Shaheed Bhagat Singh

जिन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है... दूसरों के कन्घों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं।

जरूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पथ नहीं था।

आम तौर पर लोग चीेजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।

प्रेमी, पागल, और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।

राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आजाद हूँ।

व्यक्ति को कुचल कर, वो विचारों को नहीं मार सकते।

कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।

जो व्यक्ति भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।

इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है, जैसा कि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।