दीपक पुनिया कैसे बने गोल्ड मेडलिस्ट

23 वर्षीय दीपक पुनिया ने कॉमन वेल्थ गेम्स में 86 किलोग्राम वजन की कुश्ती में पाकिस्तान के पहलवान इमाम बट्ट को ऐसी पटखनी दी कि वो खड़ा ही न हो सका और बड़े आराम से गोल्ड मेडल जीतकर भारत माता के सर को गर्व से ऊँचा कर दिया।

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How Deepak Punia became a Gold Medalist

23 वर्षीय दीपक पुनिया ने कॉमन वेल्थ गेम्स में 86 किलोग्राम वजन की कुश्ती में पाकिस्तान के पहलवान इमाम बट्ट को ऐसी पटखनी दी कि वो खड़ा ही न हो सका और बड़े आराम से गोल्ड मेडल जीतकर भारत माता के सर को गर्व से ऊँचा कर दिया। लेकिन कॉमन वेल्थ गेम्स में जीत हासिल करना इतना आसान भी नहीं है।

तो कैसे हरियाणा के इस बच्चे ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर ली? आइए जानते है। आज से तेईस वर्ष पहले, 19 अप्रैल 1999 को हरियाणा के झज्जर में, एक दूध की डेयरी चलाने वाले परिवार में, दो बेटियों के बाद दीपक का जन्म हुआ था। पिता का नाम सुभाष पुनिया और माता का नाम कृष्णा पुनिया है।

दीपक बचपन से ही खेलकूद का शौकीन था। कुश्ती उसका पसंदीदा खेल था। पांच साल की उम्र से वो गली मुहल्ले में कुश्ती करता था। सात साल की उम्र तक उसने कुश्ती के ढेर सारे दांव पेंच सीख लिए। थे। दीपक का सपना था कि वह नैशनल और फिर इंटरनेशनल लेवल पर खेलकर मेडल जीते और अपने देश का नाम रोशन करे। उन्हीं दिनों 2015 में, उसने छत्रसाल स्टेडियम के सुप्रसिध्द पहलवान गुरु सतपाल जी से कुश्ती की बाकायदा ट्रेनिंग लेना शुरू किया। फिर उसने वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में भाग लिया लेकिन वो जीत नहीं पाया। पर वो निराश नहीं हुआ और जमकर प्रैक्टिस करने लगा।

उसने सब-जूनियर चैम्पियनशिप में तीन बार भाग लिया और तीनों बार जीतकर मेडल अपने नाम किया। साल 2018 एशियाई जूनियर चैम्पियनशिप में दीपक ने भाग लेकर गोल्ड मेडल जीत लिया। उसी साल विश्व जूनियर चैंपियनशिप में भाग लेकर उसने सिल्वर मेडल जीता। 2019 में भी एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लेकर उसने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।

अब तक उसका नाम विश्व स्तर पर फैलने लगा था। 2020 में टोक्यो ऑलंपिक में दीपक ने भारत को प्रतिनिधित्व करते हुए कोलम्बिया के टाइग्रेरोस को हराकर सेमिफाइनल में पहुंचे और फिर अपने फ्रीस्टाइल परफॉर्मेंस से 85 किलो वर्ग श्रेणी के कवार्टर में चीन के खिलाड़ी को पटक दिया और बड़ी निपुणता से 6 -3 से हराकर सेमिफाइनल अपने नाम कर लिया।

जब कोविड लॉक डाउन के कारण नैशनल कैम्प बंद हुआ था तब दीपक की माँ बीमार थी। बेटे ने अपनी माँ की खूब सेवा की लेकिन माँ बच नहीं सकी। माँ की बड़ी इच्छा थी कि वह बेटे को ऑलंपिक मेडल जीतते हुए देखे लेकिन वो देख ना स्की और ना ही दीपक अपनी मां की इच्छा पूरी कर पाया। अब जब दीपक ने कॉमन वेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल की तो सबसे पहले उसे अपनी माँ की याद आई। खैर आज भारत माता और देश की हर माता दीपक की कामयाबी का जश्न मना रही है।

★सुलेना मजुमदार अरोरा