Public Figure: एक उच्च शिक्षित उद्योगपति हैं रतन टाटा

रतन टाटा, नवल टाटा के पुत्र हैं। जिन्हें नवाजबाई टाटा ने अपने पति की मृत्यु के बाद दत्तक ले लिया था। रतन टाटा के माता-पिता नवल और सोनू 1940 के मध्य में अलग हुए।

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एक उच्च शिक्षित उद्योगपति हैं रतन टाटा

Public Figure एक उच्च शिक्षित उद्योगपति हैं रतन टाटा:- रतन टाटा, नवल टाटा के पुत्र हैं। जिन्हें नवाजबाई टाटा ने अपने पति की मृत्यु के बाद दत्तक ले लिया था। रतन टाटा के माता-पिता नवल और सोनू 1940 के मध्य में अलग हुए। अलग होते समय रतन 10 साल के और उनके छोटे भाई सिर्फ 7 साल के ही थे। उन्हें और उनके छोटे भाई, दोनों को उनकी बड़ी माँ नवाजबाई टाटा ने बड़ा किया था। कैंपियन स्कूल, मुम्बई से ही रतन टाटा ने स्कूल जाना शुरू किया और कैथेड्रल में ही अपनी माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और जाॅन केनौन स्कूल में दाखिल हुए। वहीं वास्तुकला में उन्होंने अपनी शिक्षा USA में पूरी की। (Lotpot Personality)

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साथ ही काॅर्नेल यूनिवर्सिटी से 1962 में संचारात्मक इंजीनियरिंग और 1975 में हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का अभ्यास किया। टाटा अल्फा सिग्मा फाई बन्धुत्वता के सदस्य भी हैं।

बचपन से ही रतन एन. टाटा का पालन पोषण उद्योगपत्तियों के परिवार में हुआ था। वे एक पारसी पादरी परिवार से जुड़े हुए थे। उनका परिवार ब्रिटिश कालीन भारत से ही एक सफल उद्यमी परिवार था इस वजह से रतन टाटा को अपने जीवन में कभी भी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा था। रतन का ज्यादातर पालन पोषण उनकी बड़ी माँ नवाजबाई ने किया था। (Lotpot Personality)

रतन एन. टाटा एक उच्च शिक्षित उद्योगपति हैं। उन्होंने काॅर्नेल यूनिवर्सिटी से B-sc वास्तुकला की डिग्री प्राप्त की थी और USA की ही हार्वर्ड बिजनस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का भी अभ्यास किया था।

1962 में वे अपने पारिवारिक व्यवसाय टाटा ग्रुप में शामिल हुए। रतन एन. टाटा अविवाहित पुरुष हैं उनके रिश्तों को लेकर कई बार खबरें भी आती गईं। लेकिन हम सब के सामने ये सबसे बड़ा प्रश्न है कि “रतन एन. टाटा को किसने सफल किया? उनकी सफलता के पीछे कौन है?” मीडिया कई वर्षो से इस बात पर चर्चा करते आई है। ताकि वे रतन एन. टाटा की सफलता के राज को जान सकें। (Lotpot Personality)

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आइए जानतें है उनके करियर के बारे में...

रतन एन. टाटा अपना उच्च शिक्षण पूरा करने के बाद भारत वापस आये और जे.आर.डी टाटा की सलाह पर उन्होंने IBM में जाॅब की और 1962 में अपने पारिवारिक टाटा ग्रुप में शामिल हुए। जिसके लिए उन्हें काम के सिलसिले में टाटा स्टील को आगे बढाने के लिये जमशेदपुर भी जाना पड़ा। (Lotpot Personality)

1971 में, उनकी नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्राॅनिक्स के डायरेक्टर पद पर नियुक्ति की गयी। जिसकी उस समय बहुत बुरी परिस्थिति थी और उन्हें 40 प्रतिशत का नुकसान और 2 प्रतिशत ग्राहकों के मार्केट शेयर खोने पड़े। लेकिन जैसे ही रतन टाटा उस कंपनी में शामिल हुए उन्होंने कंपनी का ज्यादा मुनाफा करवाया और साथ ही ग्राहक मार्केट शेयर को भी 2 प्रतिशत से बढाकर 25 प्रतिशत तक ले गए। उस समय मजदूरों की कमी और NELCO की गिरावट को देखते हुए राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था।

जे.आर.डी टाटा ने जल्द ही 1981 में रतन टाटा को अपने उद्योगों का उत्तराधिकारी घोषित किया लेकिन उस समय ज्यादा अनुभवी न होने के कारण बहुत से लोगों ने उत्तराधिकारी बनने पर उनका विरोध किया। लोगों का ऐसा मानना था की वे ज्यादा अनुभवी नहीं हैं और ना ही वे इतने विशाल उद्योग जगत को सँभालने के काबिल हैं। (Lotpot Personality)

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लेकिन टाटा ग्रुप में शामिल होने के 10 साल बाद, उनकी टाटा ग्रुप के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की गयी। रतन टाटा के अध्यक्ष बनते ही टाटा ग्रुप ने नयी ऊँचाइयों को छुआ था। इस से पहले इतिहास में कभी टाटा ग्रुप इतनी ऊँचाईयों पर नही गया था। उनकी अध्यक्षता में टाटा ग्रुप ने अपने कई अहम् प्रोजेक्ट स्थापित किये। और देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उन्होंने टाटा ग्रुप को नई पहचान दिलवाई। (Lotpot Personality)

देश में सफल रूप से उद्योग करने के बाद टाटा ने विदेशो में भी अपने उद्योग का विकास करने की ठानी। और विदेश में भी जैगुआर रोवर और क्रूस की जमीन हथिया कर वहाँ अपनी जागीरदारी विकसित की। जिस से टाटा ग्रुप को पूरी दुनिया में पहचान मिली और इसका पूरा श्रेय रतन एन. टाटा को ही दिया गया। भारत में उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पाद टाटा इंडिका और नैनो के नाम से जाने जाते हैं।

रतन टाटा एक परोपकारी व्यक्ति हैं। जिनके 65 प्रतिशत से ज्यादा शेयर चैरिटेबल संस्थाओ में निवेश किये गए हैं। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है और साथ ही भारत में मानवता का विकास करना है। रतन टाटा का ऐसा मानना है की परोपकारियों को अलग नजरिये से देखा जाना चाहिए। पहले परोपकारी अपनी संस्थाओं और अस्पतालों का विकास करते थे जबकि अब उन्हें देश का विकास करने की जरूरत है। (Lotpot Personality)

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