रुपये पैसे हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्षों से इसके लेनदेन द्वारा हमारा जीवन सुचारू रूप से चलता रहा है। आइए आज हम जानते हैं इन रुपये पैसों की कहानी। बताया जाता है कि सन् 1540 से 1545 तक, जब शेर शाह सूरी भारत पर राज करता था तब पहली बार शेर शाह सुरी ने सिक्कों को संबोधित करते हुए रूपी (रुपये) शब्द का इस्तेमाल किया था।
उसके बाद धीरे धीरे धन रूपी इस शब्द ने कितने सारे आकार, रंग, छपाई, मूल्य और बनावट बदले और आज के रुपये में तब्दील हुआ । आज भारत के साथ साथ, आठ अन्य देशों की करेंसी को रूपी कहा जाता है। इन रुपयों की छपाई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया करती है और कॉएन यानी सिक्कों की ढलाई गवर्नमेंट ऑफ इंडिया करती है। रुपये छापने के लिए जिस प्रकार के काग़ज़ लगते हैं वो सिक्युरिटी पेपर मिल होशंगाबाद, मध्यप्रदेश और विदेश से आते हैं।
भारत में रुपये छापने के चार बैंक नोट प्रेस है और सिक्कों की ढलाई के चार ढलाई केंद्र है। नोट छापने के ये चार प्रेस है, देवास (मध्यप्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र) सालबोनी (पश्चिम बंगाल) और मैसूर (कर्नाटक)।
देवास नोट प्रेस, पूरे वर्ष में 265 करोड़ नोट छापता है जिसमें बीस रुपये, पचास रुपये, सौ रुपये और पाँच सौ रुपये के नोट होते है।
देवास में ही रुपये छापने में इस्तमाल होने वाले इंक भी निर्मित होती है। नासिक के नोट प्रिंटिंग प्रेस में, 1991 से 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपए, 10 रुपये, 50 रुपये, 100 रुपये के नोट छपते रहे है। पहले 50 और 100 के नोट यहां नहीं छपते थे। भारतीय पैसे यानी सिक्कों की ढलाई, भारत में चार जगहों पर होती है, कोलकाता, हैदराबाद, नोएडा और मुंबई। सभी सिक्कों में एक निशान प्रिंट होता है जिससे पता चलता है कि वो कहाँ बनी है।
भारतीय रुपये में हिंदी और अँग्रेजी के अलावा पंद्रह अन्य भाषाओं का इस्तमाल किया जाता है। जो रुपये एकदम पुराने और जर्जर हो जाते हैं उन्हें बैंक या निर्धारित ऑफिस में जमा कर दिया जाता हैं जो वापस मार्केट में नहीं भेजा जाता। पहले ऐसे नोटों को जला दिया जाता था, लेकिन अब पर्यावरण की रक्षा के खातिर, आरबीआई ने नौ करोड़ रुपयों में एक ऐसी मशीन इम्पोर्ट की है जो इन पुराने जर्जर नोटों को छोटे टुकड़ों में काट देते हैं, उसके बाद इन टुकड़ों को पिघलाकर उन्हें ईंटों का आकार दिया जाता है और फिर उसे अन्य उपयोग में लाया जाता है।
- सुलेना मजुमदार अरोरा