जंगल कहानी: वनराज की अदालत

जंगल कहानी (Jungle Story): वनराज की अदालत - बंदर पेड़ों की डालियों पर झूलता हुआ आया और हथौड़ा उठाकर टन-टन-टन से घंटा बजा दिया। जिसकी आवाज सुनकर जंगली जानवर अपनी अपनी फरियाद लेकर बरगद के नीचे वाली अदालत में आ गए।

By Lotpot Kids
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Jungle Story The court of the Jungle King

जंगल कहानी (Jungle Story): वनराज की अदालत - बंदर पेड़ों की डालियों पर झूलता हुआ आया और हथौड़ा उठाकर टन-टन-टन से घंटा बजा दिया। जिसकी आवाज सुनकर जंगली जानवर अपनी अपनी फरियाद लेकर बरगद के नीचे वाली अदालत में आ गए।

वनराज भी चबूतरे पर पड़े तख्त पर आकर बैठ गए। उनके बैठते ही अदालत की कार्यवाही प्रारंभ हो गई। सबसे पहले मोनी बतख ने फरियाद की। महाराज हमारे छोटे-छोटे बच्चे दीना लकड़बग्घा खा गया हैं।

वनराज ने अपने बंदर सैनिकों को भेजकर तत्काल दीना लकड़बग्घे को बुलाया और थोड़ी पूछताछ के बाद अपना फैसला सुना दिया। यही कि मोटू बंदर जमकर सौ डंडें दीना को लगाएगा। फिर क्या था, मोटू ने डंडा उठाकर दीना को मार लगानी शुरू कर दी।

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इधर एक बिल्ला-झाड़ियों में छिपा यह तमाशा देख रहा था। वह सोचने लगा कि वनराज का चेहरा बिल्कुल मुझसे मिलता हैं। मैं वन युवराज अच्छा जमूँगा।

तीन-चार दिन बाद सुबह की चढ़ती धूप के समय बिल्ले ने खुद ही अदालत का घंटा बजा दिया।

जिसे सुनकर सभी जानवर अदालत की ओर दौड़ पड़े। अदालत के तख्त पर बिल्ले को देखकर वे सभी दंग रह गए।

उन सभी को शंका में उलझा हुआ देखकर बिल्ला घुुड़क कर बोला, देखते क्या हो? कोई फरियाद हो तो पेश करो। मुझे वनराज ने युवराज बनाकर अदालत लगाने के लिए भेजा हैं।

उसकी बात सुनकर एक तोते ने सिर झुकाकर अभिवादन किया, और बोला, महाराज! हम नीम के पेड़ पर रहते हैं।

क्या परेशानी है? वन युवराज बने बिल्ले ने बीच में टोका।

अन्नदाता, एक चूहा जबरदस्ती हमारे बिल में घुस आया हैं।

वन युवराज ने गुर्राकर पूछा, कहाँ है वह चूहा? सामने पेश हो।

बेचारा चूहा कांपती आवाज में बोला, महाराज! पहले यह बिल हमारा था।

मोटे ताजे चूहे को देखकर बिल्ले में मुँह के पानी आ गया था। उसने चूहे को अपने पंजों में जकड़ कर कहा।

अब तुम लोग जाओ। इस चूहे को वनराज जी सजा देगें। मैं इसे उन्हीं के पास ले जा रहा हूँ।

जब सभी जानवरों ने अपनी अपनी राह ले ली तो बिल्ले ने चूहे को मजे से खा लिया। अब तो उसे जब भी भूख लगती। वह अपनी अदालत लगा बैठता। बेचारे भोले भाले पशु-पक्षी यही समझते कि उनको न्याय मिल रहा हैं।

एक दिन बिल्ले की अदालत में मुर्गी खरगोश अपनी फरियाद लेकर पहुँचे। मुर्गी ने पहले झुक कर वन युवराज को सलाम किया। पूछने पर बताया कि इस खरगोश ने अपने बच्चों के साथ मेरा चूजा अपने बिल में छिपा लिया हैं।

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क्यों बे, खरगोश के बच्चे! तेरी ये हिम्मत... कहाँ है इसका चूजा? बिल्ले ने गुर्राकर पूछा।

खरगोश ने दीन-हीन होकर दोनों हाथ जोड़कर कहा।

महराज यह मुर्गी झूठ बोलती है। आप मेरा घर खुदवाकर दिखवा लें। मैंने नहीं छुपाया।

इस पर बिल्ले ने घुड़क कर पूछा। क्यों री, मुर्गी! तुझे कैसे मालूम कि तेरा चूज़ा इसके बिल में छुपा हैं?

महाराज! इसके बिल पर मेरे चूजे के पंख मिले थे। मुर्गी ने विनम्र स्वर में कहा।

आज तो बिल्ले के एक तीर से दो शिकार थे। उसने एक रस्सी मुर्गी की ओर फैंकते हुए कहा, इस रस्सी से खरगोश को वहां पर बाँध दो। मुर्गी ने वैसा ही किया। खरगोश अपना अंत समझकर अपराधी की भाँति एक तरफ खड़ा हो गया।

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अभी मुर्गी खरगोश को बाँध कर मुड़ भी नहीं पाई थी कि बिल्ले ने अपना दाव चला दिया। मगर मुर्गी की चतुराई के कारण उसका वार खाली निकल गया। वह फुर्ती से उड़ कर बरगद की डाली पर जा बैठी।

अब बिल्ले ने खरगोश को अपना निशाना बनाया। किन्तु वह एक लम्बे रस्से से बँधा था। इसलिए उछल-कूद कर अपने प्राण बचाने की कोशिश करने लगा।

यह देख डाली पर बैठी मुर्गी खूब ऊँची आवाज में चीखने लगी। जंगल में घूमते वनराज के कानों से जब उसकी आवाज टकराई। तो उन्होंने मुँह उठाकर धरती हिला देने वाली दहाड़ लगाई और बरगद की ओर से आने वाली आवाज की ओर दौड़ भी लगा दी। वनराज की जान लेवा दहाड़ सुनकर वन युवराज बने बिल्ले के छक्के छूट गए और वह अपने प्राण बचाकर भाग खड़ा हुआ।

वनराज वहाँ का दृश्य देखकर दंग रह गए। बड़ी देर में खरगोश और मुर्गी ने कांपते हुए स्वर में अपनी कहानी वनराज को सुना पाई। जिसे सुनकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। और वे बोले, हमारे राज्य में यह धोखेबाज वन युवराज कौन पैदा हो गया हैं?

बंदर वनराज का संकेत समझ गया। उसने तुरंत खूब जोर से घंटा बजाना प्रारंभ कर दिया। पूरे जंगल में भगदड़ मच गई। सभी जानवर अदालत की ओर दौड़ पड़े। पल भर में सारे जंगल में पुश-पक्षी वनराज की अदालत में हाज़िर हो गए थे।

वनराज ने बंदर सैनिकों को ओदश दिया कि, जंगल का चप्पा चप्पा छान मारो और हमारा राजदªोही जहाँ भी मिले तत्काल बाँध कर ले आओ।

बंदर सैनिकों ने अपने रस्से लेकर जंगल की ओर दौड़ लगा दी। पेड़ों पर्वतों पर चढ़-चढ़कर झाड़ियों तक को छानते-छानते आखिर वन युवराज दौड़ते हुए दिखाई दे ही गए। सभी बंदरों ने पलक झपकते ही बिल्ले का गला फंसा लिया। और अदालत में ले आए।

वनराज के आदेश पर चार-पाँच बड़ी-बड़ी जीभ वाले झवरैले कुत्ते हाज़िर किए गए। जिन्हें देखकर बिल्ले के प्राण पखेरू गले में आकर अटक गए। वनराज ने राजद्रोह की सज़ा सुनाई। जिसका सभी जानवरों ने तालियों की गड़गड़हट से स्वागत किया। फिर वन युवराज के ऊपर कुत्ते छोड़ दिए गए और देखते-देखते वन युवराज बने बिल्ले के चिथड़े उड़ा दिए गए।

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