Child Story in Hindi : नन्हीं चुटकी चिड़ियाँ अपने उड़ने की कल्पना करके बहुत खुश थी। वह काफी दिनों से इंतजार में थी कि उसकी मां उसे कब उड़ना सिखाएगी।
पर आज उसकी यह तमन्ना पूरी होने जा रही थी। माँ ने उससे कहा, चुटकी, अब मैं तुम्हें उड़ना सिखा रही हूँ। पर तुम अभी बच्ची हो, इसलिए मेरे पीछे-पीछे ही रहना। किसी और तरफ जाने की कोशिश न करना।
ठीक है, माँ! चुटकी ने प्रत्यक्ष में तो हामी भर दी थी, पर वह सोच रही थी कि उड़ने सीखने के बाद वह अपने लिए खुद भोजन ढूढंकर लाएगी तथा अपनी माँ को दिखा देगी कि अब वह बच्ची नहीं रही।
चुटकी की माँ उसे उड़ना सिखाने लगी। शुरू-शुरू में चुटकी को कुछ कठिनाई आई, पर उसके बाद वह भी अपनी माँ की भाँति पंख फड़फड़ाते हुए उड़ने लगी। चुटकी की माँ ने उससे कहा। चुटकी, तुम अभी ज्यादा मत उड़ना, नहीं तो थककर गिर जाओगी।
चुटकी को अपनी माँ की सीख बहुत बुरी लगी। वह सोचने लगी कि माँ तो उसे अब भी अंडे से निकली बच्ची समझती है। अब तो मैं उड़ सकती हूँ, फिर माँ की बात क्यों मानूँ? यह सोचकर उसने अपनी गति धीमी कर दी।
जब उसकी माँ थोड़ी आगे निकल गई, तब चुटकी दूसरी दिशा में उड़ने लगी। उड़ते हुए उसकी नजर एक बस पर पड़ी, जो स्टैंड पर खड़ी यात्रियों की प्रतीक्षा कर रही थी। उसके भीतर दो-तीन बच्चे एक सीट पर बैठकर खाना खा रहे थे।
वाह! इतना बढ़िया भोजन है। मैं फूर्ति से बस में जाकर खाना खाकर वापस आ जाऊँगी। यह सोचकर वह बस के खुले दरवाजे में से फुर्र... से साथ अंदर चली गई तथा एक खाली सीट की पुश्त पर पाँव टिकाकर नीचे गिरे रोटी के टुकड़ों तथा चावल के दानों को चुगने लगी।
तभी कंडक्टर ने बस में चढ़कर दरवाजा बंद कर दिया। इसी के साथ उसने सीटी बजाई और बस चल पड़ी। यह देख चुटकी बहुत घबराई। खाने की चिंता भूल गई। वह बाहर निकलने की फिक्र करने लगी। तभी एक बच्चे की नजर चुटकी पर पड़ी और वह उसे पकड़ने के लिए दौड़ा।
चुटकी घबराकर बस में इधर-उधर उड़ते हुए बंद खिड़कियों के शीशे पर अपनी चोंच मारने लगी। लगातार पंख फड़फड़ाने के कारण वह थक कर चूर हो गई थी। तभी एक दयालु व्यक्ति ने उस पर तरस खाते हुए बस की एक खिड़की खोल दी। चुटकी फौरन उस खिड़की में से बाहर निकल गई।
बाहर चारों ओर खेत फैले हुए थे। थकी होने के कारण चुटकी एक खेत में उतर गई। जमीन पर कुछ बीच बिखरे देख उसका मन उन्हें खाने को ललचा उठा और वह सारी चिंता भूलकर उन्हें चुगने बैठ गई।
वहाँ से गुजर रहे एक शरारती लड़के ने गुलेल से उसकी तरफ पत्थर फेंका। चुटकी उस पत्थर से बाल-बाल बची। वह डर कर खेत की फसलों में छुप गई। अपनी माँ का कहा मानती, तो इस हालत में न होती।
चुटकी, तुम कहाँ हो? अचानक अपनी माँ की आवाज सुनकर चुटकी ने चैंककर ऊपर देखा। फसलों के ऊपर उसकी माँ मंडरा रही थी।
माँ को देख चुटकी खुश होकर बोली, माँ मैं यहाँ हूँ। कहने के साथ ही उसने अपने पंख फड़फड़ाए। उसकी माँ भी उसके पास आकर बैठ गई।
माँ, तुम यहाँ कैसे? चुटकी ने हैरान होकर पूछा।
मुझे मालूम था कि तुम पर मेरी किसी सीख का असर नहीं होते देखा, मैं तभी तुम्हारे विचारों को समझ गई थी। फिर मैं भी चुपके से तुम्हारे पीछे उड़ती हुई यहाँ तक आ पहुँची।
माँ, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारी कही बातों का सदा बुरा माना। अब मैं तुम्हारी हर बात पर अमल करूँगी।
शाबाश! आओ, अब घर चलें। माँ ने उसे प्यार करते हुए कहा तथा उड़ते हुए ऊपर उठ गई।
चुटकी भी धीरे-धीरे पंख फैलाते हुए अपनी माँ के पीछे-पीछे उड़ने लगी। अब उसे लग रहा था कि वह तो अभी, बच्ची ही है तथा उसे तो अपनी माँ से बहुत कुछ सीखना बाकी है।
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