सीख देती जंगल की कहानी : धोखा देने का फल

जंगल कहानी (Jungle Story) धोखा देने का फल :  प्राचीन काल की बात है। चन्दन वन का राजा जबरू शेर मर गया तो उन्होंने नये राजा का चुनाव किया। शेरूमल को सभी सिंहों ने अपना राजा चुना। नये पद पर आकर शेरूमल ने सोचा कि अब मुझे इनके विश्वास की रक्षा करनी चाहिए। मुझे अपना समय प्रजा की भलाई में ही लगाना चाहिए।

By Ghanshyam
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Lotpot Comic Jungle Story Result of betraying

जंगल कहानी (Jungle Story) धोखा देने का फल :  प्राचीन काल की बात है। चन्दन वन का राजा जबरू शेर मर गया तो उन्होंने नये राजा का चुनाव किया। शेरूमल को सभी सिंहों ने अपना राजा चुना। नये पद पर आकर शेरूमल ने सोचा कि अब मुझे इनके विश्वास की रक्षा करनी चाहिए। मुझे अपना समय प्रजा की भलाई में ही लगाना चाहिए।

शेरू ने अपने राज्य के विकास के लिए अनेकों योजनाएं बनाई उन योजनाओं को सफल बनाने के लिए उसे उनके राज कर्मचारियों को नियुक्ति की जरूरत महसूस हुई। उसने पूरे जंगल में यह घोषणा करवा दी कि कल महाराज मंत्रियों और अन्य राज कर्मचारियों की नियुक्ति करेंगे। अतः जंगल के सभी जानवर सुबह नदी के पास मैदान में एकत्रित हो जायें।

शेरूमल राज कर्मचारियों ने चुनाव को लेकर कुछ चिन्तित सा था। यह बात वह बहुत अच्छी तरह से जानता था कि राज कर्मचारी राजा की बहुत बड़ी शक्ति होते हैं। राजा उन्हीं के साथ मिलकर शासन चलाता है। वे जैसा अच्छा या बुरा काम करते हैं, वैसे ही विचार प्रजा राजा के विषय में भी बना लेती है। ईमानदार व्यक्ति ही राज्य को उन्नति को रहा पर ले जा सकते हैं। भ्रष्ट और बुद्धिहीन कर्मचारी तो राजा क्या, पूरे के पूरे राज्य को बदनाम कर देते हैं।

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शेरूमल ने राज कर्मचारियों को खूब सोच-समझकर, ठोक बजाकर चुनाव किया था। उसे अपनी बुद्धि पर पूरा विश्वास था और यह विश्वास काफी सीमा तक सही भी साबित हुआ। उसके अधिकांश मन्त्री और कर्मचारी बड़े ही परिश्रमी, ईमानदार और प्रजा के हित के लिए तत्पर रहने वाले थे। राज कर्मचारियों के उस समूह में भूल से एक धूर्त गीदड़ भी आ गया था। गल्ती इसमें शेरू की भी नहीं थी। वह गीदड़ जग्गू बात करने में बड़ा ही कुशल था। उससे बातें करते समय लगता था कि वह बड़ा ही योग्य और ज्ञानी है। उसकी चतुराई और बात करने की कला दूसरों को बड़ी जल्द प्रभावित कर लेती थी। उसकी बातें सुनकर लगता था कि वह न जाने कितना आदर्शवादी हैं।

पर अन्दर से जग्गू इससे बिल्कुल अलग था। वह बड़ा ही धूर्त कपटी और आलसी था। जब उसने देखा कि महाराज शेरूमल और प्रजा दोनों ही उस पर विश्वास करने लगे हैं तो अपना वास्तविक रूप दिखाना प्रारंभ किया। अब वह काम बहुत कम करता था। सारे दिन आराम करता और छोटे-छोटे जीवों से अपनी सेवा कराता। जब चाहे डरा-धमकाकर किसी का माल हड़प जाता। जग्गू चाहे किसी का अपमान कर देता, चाहे किसी पर रौब गांठने लगता। यह तो महाराज का विश्वास पात्र है, उनसे न जाने कब जाकर क्या कह दें। इस डर से उसके सामने कोई नहीं बोलता था। इसका परिणाम यह हुआ जग्गू और अधिक मनमानी करने लगा।

दूसरे कर्मचारियों को प्रारंभ में ही जग्गू के सारे दुर्गुण तो पता नहीं लगे पर उसकी काम चोरी की आदत ही उनके सामने आ गई। उन्होंने कई बार जग्गू को टोका भी कि तुम ठीक से काम किया करो पर जग्गू उनकी बात कानों से निकाल देता। एक दिन मंत्री गजराज ने जब जग्गू को काम के लिए डांटा तो जग्गू भड़क उठा। तुम कौन होते हो टोकने वाले? उसने बड़ी ही तेज आवाज में कहा। गजराज ने उसके मुँह लगना उचित न समझा।

जग्गू के स्वभाव का प्रभाव अब कुछ दूसरे जानवरों पर भी पड़ने लगा। वे भी उसी की भांति काम चोरी करते, खाते और पड़े रहते। कुछ दिनों एक ऐसे ही चलता रहा। फिर यह सूचना महाराज शेरूमल के पास भी पहुँची। उन्हें अपने कर्मचारियों के विषय में जब यह बात लगी तो बड़ा दुख हुआ। शेरूमल ने स्वंय इस विषय की जाँच की और इसे सही पाया। जब उन्होंने जग्गू और सभी कामचोर जानवरों को काम से हटा दिया। यही नहीं अपितु दो दिन के अन्दर उन्हें छोड़कर चले जाने का भी आदेश सुना दिया।

गजराज और अन्य मंत्रियों ने महाराज शेरूमल से अनुरोध भी किया कि वे जग्गू और अन्य कर्मचारियों को इतना कठोर दण्ड न दें। पर शेरूमल ने भंयकर गर्जना करते हुए कठोर स्वर में कहा। मुझे कामचोर, रिश्वत लेने वाले कर्मचारी बिल्कुल पंसद नहीं फल तो उन्हें मिलना ही चाहिए। राजा शेरू ने जग्गू की ओर इशारा करते हुए कहा।

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महाराज, बात तो ठीक ही है आपकी! गजराज तथा अन्य राज कर्मचारियों ने कहा।

जग्गू और दूसरे जानवर शेरूमल के सामने बहुत गिड़गिड़ाये कि अब वे ऐसा काम नहीं करेंगे। पर राजा ने स्पष्ट ही कह दिया। यह दंड तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा। हाँ, यह हो सकता है कि यदि तुम अपनी गलती सुधार लो तो परीक्षा लेने के बाद तुम्हें फिर इस जंगल में रहने की अनुमति मिल सकती है। हारकर जग्गू और उसके साथी अपना सा मुँह लेकर उस जंगल से चले गये। अपने राजा को धोखा देने का फल उन्हें मिल चुका था।

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