बाल कहानी : खलीफा की भूल सुधार

खलीफा उमर बड़े नेक व दयालु प्रशासक थे। अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वे भेष बदलकर रात को घूमा करते थे। एक रात को वह गश्त कर रहे थे कि एक घर सें बच्चों के रोने की आवाज सुनी। वे बच्चें के चुप होने की प्रतीक्षा करते रहे। जब बहुत देर तक उनके रोने की आवाज बंद नहीं हुई तो उन्होंने आंगन में झाँककर देखा।

By Lotpot
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बाल कहानी (Child Story) खलीफा की भूल सुधार : खलीफा उमर बड़े नेक व दयालु प्रशासक थे। अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वे भेष बदलकर रात को घूमा करते थे। एक रात को वह गश्त कर रहे थे कि एक घर सें बच्चों के रोने की आवाज सुनी। वे बच्चें के चुप होने की प्रतीक्षा करते रहे। जब बहुत देर तक उनके रोने की आवाज बंद नहीं हुई तो उन्होंने आंगन में झाँककर देखा।

वहाँ एक स्त्री चूल्हे हांडी में चम्मचा चला रही थी। उसके पास ही बैठे तीन बच्चे रो रहे थे। उन्होंने पूछा। ये बच्चे क्यों रो रहे है? स्त्री ने उत्तर दिया कि। भूखे हैं इसलिए रो रहे हैं। तो खाना बनाने में इतनी देर क्यों कर दी जो कुछ पका रही हो, जल्दी से इन्हें खाने को दे दो।

स्त्री ने कहा, अन्दर झांककर हांडी में देखो। खलीफा उमर ने हांडी में झाककर देखा तो दंग रह गये। उसमें सिर्फ पानी के अलावा कुछ नहीं था। स्त्री अपने दुपट्टे के पल्लू से अपनी आँसुओं से भरी आँखों को पोंछ रहीं थी। वह बोली, इन्हें बहला रही हूँ रोते-रोते यूं ही थककर सो जाएगें। घर में कुछ भी खाने को नहीं है फिर भला क्या पकाऊँ?

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तुम इतनी गरीब हो तो खलीफा उमर से फरियाद क्यों नहीं करती कि तुम्हारें बच्चों के लिए वजीफा बांध दिया जाये। खलीफा उमर ने कहा। खलीफा उमर की बात सुनकर स्त्री बोली। खलीफा के पास न्याय देने के लिए समय ही कहा है? उसके राज्य का विस्तार इतना अधिक हो गया है कि वह प्रजा को न्याय देने में समर्थ नहीं है।

खलीफा उमर उल्टे पाँव वापस लौट गया। शाही भण्डार में पहुंचे जहाँ अन्न और कपड़ा एकत्र था, एक बोरी आटा, घी, चीनी, खजूर और कुछ कपड़े लेकर वापस चले। गुलाम ने सामान खुद ले जाना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया बोले। कयामत के दिन मेरा बोझ तुम नहीं उठाओगे। मेरे कर्मो को जवाब मुझसे पूछा जाएगा।

उस स्त्री के घर पहुँचकर उन्होंने हांडी में घी, खजूर तथा आटा डाल कर चूल्हे पर चढाया। स्वंय फूंक मार कर चूल्हा जलाया। हलवा पक गया तो, बच्चे जो सो गये थे, उन्हें उठाकर अपने हाथों से हलवा खिलाया फिर बाहर जाकर बैठ गये।

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थोड़ी देर बाद बच्चों के हंसने-खेलने की आवाज आने लगी। खलीफा उमर ने उठकर स्त्री से कहा। बहन, अब मैं जाता हूँ। मैंने इस घर में बच्चों के हंसी सुनकर वापस जा रहा हूँ। हाँ! इस बात पर विश्वास रखो कि तुम्हारी फरियाद खलीफा उमर तक पहुँच गई है। तुम्हें न्याय जरूर मिलेगा। तुम्हारे बच्चे अब भूखे नहीं रोयेंगे। दूसरे ही दिन खलीफा उमर ने उस विधवा के बच्चों के गुजारे के लिए वजीफा बांध दिया।

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