छोटे जंगल चम्पक वन की शिक्षा देती कहानी : दूध का दूध और पानी का पानी

चंपक वन में भोलू खरगोश रहता था। वह बहुत ईमानदार था। खेती करके गुजारा करता था। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक थी। जितना मिल जाता उसी में गुजर-बसर कर लेता था।

By Lotpot Kids
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Lotpot Moral Story Justice in Hindi

Hindi Kids Story- दूध का दूध और पानी का पानी:  चंपक वन में भोलू खरगोश रहता था। वह बहुत ईमानदार था। खेती करके गुजारा करता था। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक थी। जितना मिल जाता उसी में गुजर-बसर कर लेता था।

एक बार उसकी बूढ़ी माँ बीमार पड़ गई। बहुत इलाज करवाया पर ठीक नहीं हुई। किसी ने उसे चंपक वन जाकर डाॅक्टर मस्तराम भालू से इलाज करवाने की सलाह दी। वह वहां जाने को तैयार हो गया। पर अब तक इलाज करवाने में उसका सारा धन खर्च हो गया था। जंगल में जबरू हाथी रूपये उधार देने का काम करता था। भोलू खरगोश जबरू के पास कर्ज लेने गया। उसने कर्ज देने के लिए जमानत देने के लिए कहा।

भोलू अपने मित्र खरगोश के पास गया। उसने उसे अपनी परिस्थिति बताई और जमानत देने के लिए कहा। सोनू ने भोलू की बात मान ली। वह जबरू हाथी के पास गया और बोला। जबरू चाचा, भोलू मेरा मित्र है। उसे दो हजार रूपये उधार दे दो। वह ब्याज सहित चुका देगा। यदि, यह नहीं चुकाएगा तो ये रूपये मैं चुकाऊंगा। इस तरह उसने भोलू की जमानत ले ली। जबरू से रूपये उधार लेकर भोलू अपनी माँ को चंपक वन ले गया।

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डाॅक्टर से इसका इलाज करवाया वह जल्दी ही स्वस्थ हो गई माँ के ठीक हो जाने से भोलू खुश था। इलाज करवाने के बाद वह अपनी माँ के साथ वापस चंपक वन लौट आया

उसे जबरू से लिए हुए कर्ज की चिन्ता थी उसने अपने खेत में कड़ी मेहनत की। जल्दी ही उसकी मेहनत रंग लाई। अबकी बार उसके खेत में बहुत शानदार फसल हुई। उसने झटपट फसल काटी और बाजार में बेच दी। फल के रूपयों से वह जबरू का कर्ज उतारना चाहता था। वह जबरू को रूपये देने जा रहा था। उसकी मां ने भी उसके साथ चलने की इच्छा प्रकट की। वह जबरू को धन्यवाद देना चाहती थी।

वह सोनू खरगोश के साथ रूपये चुकाने के लिए जाना चाहता था। पर किसी काम से नंबर वन गया हुआ था। भोलू जल्दी से जल्दी कर्ज से मुक्त होना चाहता था। इसलिए वह अपनी माँ के साथ जबरू हाथी के घर गया। उसने ब्याज सहित कर्ज के रूपये चुका दिये भोलू की माँ ने जबरू को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।

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इन बातों को कई दिन बीत गए। भोलू कर्ज चुकाकर निश्ंिचत हो गया था। पर वह कर्ज चुका देने की बात सोनू खरगोश को बताना भूल गया। सोनू भी सोच रहा था कि शायद भोलू ने कर्ज चुका दिया है। इसीलिए उसने कर्ज के बारे में भोलू से कभी कोई चर्चा नहीं की।

जबरू के मन में बेईमानी आ गई थी। एक दिन उसने सोनू को बुलवाया। वह उससे बोला कि तुम्हारे मित्र भोलू ने अब तक उधार लिए हुए रूपये नहीं चुकाये हैं। तुम उसे रूपये चुकाने के लिए कहो। यदि उसने रूपये नहीं लौटाये तो मैं कर्ज तुमसे वसूल कर लूंगा।

सोनू को चिंता हुई। वह दौड़ता हुआ भोलू के पास गया। उससे कर्ज न चुकाने की शिकायत की। मगर, भोलू ने कहा कि वह तो बहुत पहले ही कर्ज उतार चुका है। जबरू की माँ ने भी समर्थन किया। सोनू अपने साथ भोलू को लेकर जबरू हाथी के घर गया। हाथी को सोनू ने कहा। जबरू चाचा, आप अपनी बही-खाते अच्छी तरह देखें। मेरा मित्र भोलू ब्याज सहित रूपये लौटा चुका हैं।

हाथी ने झुठलाते हुए कहा इसे कहते हैं चोरी और सीना-जोरी। भोलू ने समय पर रूपये नहीं चुकाए, ऊपर से वह झूठ और बोल रहा है। यदि, उसने रूपये चुकाये हैं तो इसका क्या सबूत हैं।

भोलू ने हाथ जोड़कर कहा। मैं, मेरी माँ के साथ रूपये लौटाने आया था। वह मेरे साथ आप की उदारता के लिए धन्यवाद देने आई थी।

जबरू ने इन सब बातों के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया। भोलू को झुठलाता हुआ वह बोला। मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम इतना झूठ बोलोेेगे। अफसोस तो इस बात का है तुमने अपने झठ में अपनी माँ का भी शामिल कर लिया हैं। यह तो मानी हुई बात है कि कर्ज चुकाते समय तुम जमानत देने वाले सोनू को अवश्य साथ लाते। पर, तुमने कर्ज चुकाया ही नहीं तो, सोनू को कहाँ से लाते?

दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए थे। आखिर मामला राजा शेर सिंह के दरबार में पहुँचा। दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी बातें कहीं। सचमुच मामला गंभीर था। यह बात साफ थी कि भोलू ने सोनू को जमानत पर जबरू के दो हजार रूपये लौटाते समय उसकी माँ साथ थी माँ की गवाही की बात को साफ तौर पर जबरू झुठला रहा था।

इसीलिए सारा मामला जबरू के पक्ष में बन रहा था। फिर भी शेर सिंह को भोलू की बात सच लग रही थी। शेर सिंह ने कुछ क्षण विचार किया और यह फैसला सुनाया कि 1000 रूपये भोलू चुकाए। बाकी 1000 रूपये जबरू स्वयं भुगते। फैसला सुनकर जबरू बहुत प्रसन्न हुआ। क्योंकि उसे 1000 रूपये यूं ही मुफ्त में मिल रहे थे। पर, बेचारा भोलू बहुत दुखी था। उसे बेवजह हजार रूपये देने पड़ रहे थे। वह दरबार में ही रोने लगा। यही हालत उसकी माँ की भी थी। उसे झूठा कहे जाने को भी अफसोस था। वे दोनों गिड़गिड़ाकर शेर सिंह से इस अन्याय के विरूद्ध प्रार्थना करने लगे।

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शेर सिंह ध्यानपूर्वक दोनों पक्षों को देख रहा था। उसने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि जबरू हाथी झूठ बोल रहा है। उसे रूपये मिल चुके है यदि रूपये नहीं मिले होते तो 1000 रूपये का घाटा होने पर वह उदास हो जाता। उसका खुश होना और भोलू का दुखी होना मामले की सच्चाई प्रकट करता है। शेर ंिसंह ने जबरू पर 1000 रूपये का जुर्माना लगाया और जुर्माने की रकम भोलू खरगोश को दिलवाई। इस तरह न्याय करके ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ कर दिया।

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