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अरुंधति रॉय एक प्रसिद्ध भारतीय लेखिका, निबंधकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने साहित्य और सामाजिक मुद्दों पर अपने योगदान से अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई है।
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उनका जन्म 24 नवंबर 1961 को शिलॉन्ग, मेघालय में हुआ था। उनके पिता बंगाली हिंदू और माता केरल की सीरियाई ईसाई थीं।
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अरुंधति ने वास्तुकला की पढ़ाई दिल्ली स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर से की और इसी दौरान फिल्म निर्माता प्रदीप कृष्ण से विवाह किया, हालांकि यह विवाह लंबे समय तक नहीं चला।
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1997 में उनका पहला उपन्यास "द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स" प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें बुकर पुरस्कार दिलाया और वे यह पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
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उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन में भाग लिया और बड़े बांधों के निर्माण के खिलाफ आवाज उठाई। इसके अलावा, उन्होंने भारत के परमाणु परीक्षणों, वैश्वीकरण, और मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ भी अपने विचार प्रकट किए।
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अरुंधति ने फिल्मों में भी योगदान दिया है, जैसे "इन विच एनी गिव्स इट दोज़ वन्स" और "इलेक्ट्रिक मून" के लिए पटकथा लिखी और "मैसी साहब" में अभिनय किया।
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उनकी प्रमुख रचनाओं में "द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स" और "द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस" उपन्यास शामिल हैं, साथ ही कई निबंध संग्रह भी हैं।
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उन्हें 1997 में बुकर पुरस्कार, 2002 में लान्नान सांस्कृतिक स्वतंत्रता पुरस्कार, 2004 में सिडनी शांति पुरस्कार और 2017 में नॉर्मन मेलर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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वर्तमान में अरुंधति रॉय दिल्ली में रहती हैं और लेखन तथा सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं।
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उनकी जीवन यात्रा साहित्य और सामाजिक सक्रियता का प्रेरणादायक उदाहरण है, जो समाज के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनने की प्रेरणा देती है।
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