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अज़ीम प्रेमजी भारतीय उद्योग जगत के प्रमुख नामों में से एक हैं, जिन्होंने विप्रो लिमिटेड के संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में सॉफ्टवेयर उद्योग में अपनी विशेष पहचान बनाई है।
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उनका जन्म 24 जुलाई, 1945 को मुंबई में हुआ था और वे एक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता मोहम्मद हाशिम प्रेमजी को बर्मा का चावल का राजा कहा जाता था।
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अज़ीम प्रेमजी ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई की और अपने पिता की मृत्यु के बाद 1966 में विप्रो का कार्यभार संभाला।
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विप्रो को एक बहुआयामी कंपनी में बदलते हुए, उन्होंने बेकरी वसा, टॉयलेटरीज़, हेयर केयर साबुन, बेबी टॉयलेटरीज़, लाइटिंग उत्पाद और हाइड्रोलिक सिलेंडर बनाने की दिशा में काम किया।
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1980 के दशक में उन्होंने आईटी उद्योग में कदम रखा और विप्रो को एक प्रमुख आईटी कंपनी में बदल दिया। उन्होंने अमेरिकी कंपनी सेंटिनल कंप्यूटर कॉर्पोरेशन के साथ मिनी कंप्यूटर बनाने की शुरुआत की।
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प्रेमजी ने 2011 में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की और स्कूली शिक्षा सुधारने के लिए 2 बिलियन अमरीकी डॉलर दान किए।
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वे 'द गिविंग प्लेज' पर हस्ताक्षर करने वाले पहले भारतीय थे, जिसमें दुनिया भर के धनी लोगों को अपनी अधिकांश संपत्ति परोपकार के लिए दान करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
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अज़ीम प्रेमजी ने अपनी संपत्ति का 25% से अधिक दान कर दिया है और विप्रो में अपनी 18% हिस्सेदारी भी दान कर दी, जिससे उनका कुल योगदान 39% हो गया।
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उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जैसे कि पद्म भूषण (2005) और पद्म विभूषण (2011), और वे भारत के सबसे धनी और परोपकारी व्यक्तियों में से एक हैं।
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अज़ीम प्रेमजी की कहानी न केवल व्यापार में उनकी सफलता को दर्शाती है, बल्कि उनके परोपकारी कार्यों और समाज सेवा के प्रति उनके समर्पण को भी उजागर करती है।
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