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रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'रवि सिंह' और माँ का नाम 'मनरूप देवी' था।
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दिनकर जी का बचपन ग्रामीण इलाकों में बीता और उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बीए. की डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा, उन्होंने संस्कृत, बंगाली, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया।
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दिनकर जी की साहित्यिक यात्रा 1930 के दशक में शुरू हुई। उनकी कविताओं में स्वाधीनता संग्राम, समाज सुधार, और जीवन के विभिन्न पहलुओं का गहरा चित्रण मिलता है।
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उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मिरथी', और 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' शामिल हैं, जो भारतीय महाकाव्यों और स्वतंत्रता संग्राम की वीरता को दर्शाती हैं।
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दिनकर जी की साहित्यिक शैली में वीर रस, श्रृंगार रस, और भक्ति रस का मिश्रण देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं में पारंपरिक और आधुनिक विचारों का संगम है।
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उन्हें 1959 में 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और उसी वर्ष 'पद्म विभूषण' से भी सम्मानित किया गया।
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स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी कविताएँ राष्ट्रीय जागरूकता और समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। वे स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं।
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दिनकर जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया और विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में अध्यापन कार्य किया। उनकी शिक्षाएँ साहित्यिक और शैक्षिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
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उनकी साहित्यिक विरासत आज भी जीवित है और भारतीय साहित्य में उनका प्रभाव अमिट है। उनकी कविताएँ और काव्य रचनाएँ नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
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दिनकर जी की रचनाओं में सामाजिक चेतना, ऐतिहासिक संदर्भ, और वीरता का संगम होता है, जो उन्हें एक महान कवि बनाता है। उनके जीवन और रचनाओं का अध्ययन भारतीय साहित्य की समृद्धि को समझने में सहायता करता है।
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