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कर्पूरी ठाकुर 1924 में नाई समुदाय में जन्मे और पिछड़े वर्गों के लिए उनके समर्पण और सेवा का कोई सानी नहीं है।
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उन्होंने गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल में भी रहे।
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उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी के लिए कार्य किया और शिक्षा के लिए नए स्कूल और कॉलेज स्थापित किए।
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उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए प्रयास किए, जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षण शामिल था।
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उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया और उनकी नीतियों ने पिछड़ी राजनीति के उदय में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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उन्हें "जन नायक" और "सामाजिक न्याय का प्रतीक" कहा गया।
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उनका जीवन और कार्य भारतीय संविधान की भावना का प्रतीक है, जो समानता, भाईचारे और न्याय की वकालत करता है।
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