जंगल की कहानी : रोबिन खरगोश की तरकीब

जंगल की कहानी | रोबिन खरगोश की तरकीब:- रोबिन खरगोश अपनी ही मस्ती में चला जा रहा था। उछलना कूदना तो उसकी आदत में ही था। सीधा चलना तो जैसे उसने सीखा ही न था। चलते चलते कंकर पत्थरों को ठोकर मारना और छोटे पौधों के पत्तो पर अपने दांत जमाना उसका शौक था।

By Ghanshyam
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Story of the Jungle Robin Rabbit's Idea

जंगल की कहानी | रोबिन खरगोश की तरकीब:- रोबिन खरगोश अपनी ही मस्ती में चला जा रहा था। उछलना कूदना तो उसकी आदत में ही था। सीधा चलना तो जैसे उसने सीखा ही न था। चलते चलते कंकर पत्थरों को ठोकर मारना और छोटे पौधों के पत्तो पर अपने दांत जमाना उसका शौक था। यों तो रोज ही रोबिन खरगोश को घूमना फिरना अच्छा लगता था लेकिन छुट्टी का दिन हो तो क्या कहना?

उस दिन भी रोबिन के स्कूल में छुट्टी थी। आज तो खूब दूर तक घूमने जाने की सोचकर ही रोबिन घर से निकला था मौसम भी सुहावना था। बादलों के छोटे छोटे टुकड़े आकाश में मंडरा रहे थे और हवा भी मस्तानी चाल में झूमता हुआ वह कब जंगल के अगले छोर पर पहुँच गया उसे पता ही नहीं चला। उसे तो तब ध्यान आया जब वह सामने से आ रहे एक भेड़िये से लगभग टकराने ही वाला था।

ओह! क्षमा करना भेड़िये महाराज, रोबिन बोला।

रोबिन खरगोश को देखकर भेड़िया मन ही मन खुश होने लगा। इतना मोटा ताजा खरगोश उसने पहले कभी नहीं देखा था। इसका मांस कितना मीठा और मुलायम होगा? यह सोचकर भेड़िये के मंुह में पानी भर आया।

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रोबिन खरगोश को भी उसके मन की बात भांपते देर नहीं लगी। पर उस समय वह भागता तो अवश्य ही पकड़ा जाता। इसलिए वह बच निकलने की तरकीब सोचने लगा।

अपनी अपनी जगह भेड़िया और खरगोश दोनों अपने अपने ढंग से सोच रहे थे।

अरे बेटा! तुम अकेले कहाँ जा रहे हो? भेड़िये ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा।

मैं एक ऐसे जानवर की तलाश कर रहा हूँ जो मुझे मेरे भाई से बचा सके।

रोबिन खरगोश ने तुरन्त उत्तर दिया।

तो क्या तुम्हारा भाई भी है?

हाँ भेड़िये महाराज, असल में मेरा भाई दिन प्रतिदिन इतना मोटा होता जा रहा है कि उससे हिला भी नहीं जाता। खुद तो कुछ करता नहीं है, बस मुझ पर हुक्म चलाता रहता है। उसके लिए भोजन भी मुझे ही ले जाना पड़ता है।

पर तुम किसी जानवर को क्यों तलाश रहे हो।

यदि कोई जानवर मुझसे दोस्ती कर ले तो मैं उसके रहने का ठिकाना बता सकता हूँ ताकि अपनेे भाई से मुझे मुक्ति मिले। रोबिन खरगोश की बात सुनकर तो भेड़िये की बांछे खिल गई। उसने सोचा पहले इसके भाई को ही दबोचा जाए। उसका मांस तो इससे भी मुलायम होगा। फिर इसे तो बाद में भी खाया जा सकता है।

अगर तुम चाहो तो इस काम में मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ।

भेड़िये की बात सुनकर रोबिन खुशी से उछलने लगा। सच भेड़िये महाराज।

हाँ बेटा, अब बुढ़ापे में क्या झूट बोलूँगा मैं?

तो चलिए मेरे साथ।

इसके बाद भेड़िया और रोबिन खरगोश दोनों साथ साथ जंगल की ओर चल पड़े। रोबिन ने सोचा कि भेड़िये को बातों में लगाकर वह किसी सुरक्षित स्थान पर भाग जाएगा पर तभी एक और तरकीब उसके दिमाग में आई।

महाराज! आप मेरे भाई से तो नहीं मिल जाएंगे न?

रोबिन के प्रश्न पर भेड़िया बोला। कैसी बातें करते हो बेटा? तुम्हारी सहायता का वचन देकर भला मैं तुमसे धोखा करूँगा। छी... छी... ऐसा तो सोचना भी पाप है। मुझ पर विश्वास करो।

कुछ देर चलने के बाद रोबिन खरगोश के सामने एक बड़े पेड़ को देखकर रूक गया।

यही इस पेड़ के दूसरी ओर सामने कई छोटे छोटे पौधे हैं। उन्हीं के पास रहता है। मेरा मक्कार भाई। आप जाकर उसे पकड़ लें और मेरा पीछा छुड़ायें उस पाजी से।

यह सुनकर भेड़िया जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा तो रोबिन उसे उकसाते हुए बोला। जरा जल्दी करना महाराज मेरी जान बचाने के लिए भगवान आपको स्वर्ग प्रदान करेगा।

भेड़िया तो लालच में अन्धा हो गया था। उसने दो छलांग लगाई और तीसरी छलांग के बाद तो उसके होश ही उड़ गए। उसे लगा जैसे वह कीचड़ के तालाब में धंसता जा रहा हो। असल में उस स्थान पर दलदल था। उस समय भेड़िये को अपनी मूर्खता पर बड़ा गुस्सा आया पर सब बेकार था। उसने बहुत पांव मारे पर वह धीरे धीरे पूरी तरह उसमें धंसता गया। उसे पृथ्वी में समाते देख रोबिन खरगोश खुशी खुशी अपने घर लौट गया।

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