Travel : मेहरानगढ़ किला अपनी खूबसूरत बनावट के लिए जाना जाता है लेकिन इस किले के साथ कुछ इतिहास भी जुड़ा है, जो ज्यादातर लोगों को नहीं पता।
अपने खूबसूरत वास्तुकला, भयंकर दीवारों, सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर मेहरानगढ़ किला भारत के राजस्थान में मौजूद उम्दा किलों में से एक है। रुडयार्ड किपलिंग ने इस किले को यह कहकर बयान किया था कि ‘‘यह एक ऐसी जगह है जिसे टाइटन ने बनाया था और इसमें रंग सुबह के सूरज ने भरे है।’’
यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, शहर की दिगंत से 400 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। यह किला जोधपुर के किसी भी जगह से दिख सकता है।
इस किले की खूबसूरती के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। मेहरान गढ़ किले के श्रीनगर चैक पर लाल संगमरमर की कारीगरी, पेंटिंग की चित्रशाला, दौलत खाना में अलंकृत पालकी, शीश महल में बारीक शीशे का काम, फूल महल की सोने से बनी पेंटिंग, तखत निवास के खूबसूरत कारीगरी, झांकी महल के झरोखे और किले के आसपास घिरे ब्रह्मिनिक नीले घरों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है।
मेहरानगढ़ किले को इसका नाम कैसे मिला?
मेहरानगढ़ किला, सूर्य भगवान के किले को उसका नाम मैहर- ग्रह से मिला है। मैहर मतलब सूर्य और ग्रह मतलब किला। राठौर वंश के लिए सूर्य सबसे मुख्य भगवान थे। कहा जाता है की राठौर सूर्य की संतान है। देशी भाषा के मुताबिक मैहर- ग्रह बनकर मेहरानगढ़ हो गया।
जिस जगह पर यह खड़ा है
मेहरानगढ़ किला मालनी आतिशी सूट कांटेक्ट पर बना है जो भारतीय उपमहाद्वीप पर परेसाम्ब्रियन युग पर हुई आखिरी आतिशी क्रिया को दर्शाता है। भारत के जियोलाजिकल सर्वे के मुताबिक इसे राष्ट्रीय भौगोलिक स्मारक घोषित किया गया है।
500 साल पुराना किला
हालाँकि इस किले को जोधपुर के खोजक राओ जोद्धा ने 15वी शताब्दी में बनवाया था लेकिन इसके साथ जुडी कई जगह 500 साल पहले बनी। आज की तारीख पर खड़ा यह किला 17वी शताब्दी में बना था जिसे महाराजा अजीत सिंह ने बनवाया था।
चट्टान पर खड़ा हुआ किला
शुरुआती दिनों में जोधपुर शहर इस किले की 4 दीवारी के अंदर ही सीमित था। हालाँकि किले के 50 साल के निर्माण के दौरान जोधपुर काफी बड़ा हो गया है और इसमें थार राज्य के कई लोगों ने आकर रहना शुरू कर दिया। इस किले के 7 गेट हैं: जय पोल, लोहा पोल, फतेह पोल, अमृता पोल, दूदकांग्र पोल, गोपाल पोल और भेरू पोल।
यह किला बखुरचीरिआ नाम की सीधी चोटी पर स्थित है जो जोधपुर के क्षितिज से 400 मीटर ऊँचा है और यह 5 किलोमीटर तक फैला हुआ है। मेहरानगढ़ की दीवारे 36 मीटर ऊँची और 21 मीटर चैड़ी है और यह राजस्थान की कई खूबसूरत और इतिहासिक जगहों को सुरक्षित रखता है।
श्रापित की पौराणिक कथा
इस किले को राओ जोधा द्वारा निर्माण करने की कहानी काफी दिलचस्प है। इस किले की नीव राओ जोधा ने मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर दूर बखुरचीरिआ नाम की एक चट्टान पर 1459 में रखी थी। इतिहास के मुताबिक, किला बनाने के लिए राओ जोधा चट्टान की आत्मा यानी एक संत चीरिआ नाथ जी को हटाना चाहते थे। वह पक्षियों के भगवान् थे। इस बात से क्रोधित चीरिआ नाथ जी ने राओ जोधा को श्राप दिया की किला हमेशा पानी की कमी की वजह से जूझेगा। राओ जोधा ने संत को मनाने के लिए किले के अंदर एक घर और मंदिर बनवाकर दिया। यह घर और मंदिर संत की तपस्या करने वाली जगह के बहुत करीब था। लेकिन आज भी इस जगह हर 3 से 4 साल में सूखा पड़ता है। चीरिआ नाथ जी के श्राप के परिणाम से बचने के लिए राओ जोधा ने रजिया बाम्बी नाम के एक युवा आदमी को जिंदा दफनवाया था ताकि नया किला शुभ साबित हो। बदले में रजिया बाम्बी से वादा किया गया था कि उनका परिवार और आने वाली पीढ़ी की देखरेख राठौर करेंगे। इस वादे का मान रखते हुए आज भी रजिया की पुश्ते महाराजा के परिवार के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये हुए है।
पौराणिक ज्वालामुखीय चट्टान
बखुरचीरिआ चट्टान की हवा वाली दिशा में रोजोदा का रेगिस्तान बाग है जिसमे निर्जला और रेगिस्तान की 72 हेक्टेयर जमीन की सब्जिया रखी जाती है। इस जगह के आसपास कई ज्वालामुखीय चट्टानें है और 600 साल पहले बने थे। इस बाग में पर्यटकों के लिए गैलरी, कैफे और पेड़ पौधों वाली नर्सरी भी है। बाग में घूमते हुए आपको कई तितलियाँ और पक्षी नजर आएंगे।
एक बात जो मेहरानगढ़ किले को राजस्थान के बाकी किलों से अलग करती हैं वह है इसकी कला और संस्कृति। इस किले के अलग अलग हिस्सों में रोजाना अलग अलग सांस्कृतिक और देसी कलाकार अपनी कला को दर्शाते है। अलग अलग कलाकारों को रंग बिरंगी पोशाकों में राजस्थानी लोक गीतों पर थिरकते देखना बहुत अच्छा लगता है।