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यह कहानी गुड़गांव के एक स्कूल के दो दोस्तों, रोहन और समीर की है, जो "सुपर स्टूडेंट कॉम्पिटिशन" में भाग लेते हैं, जहाँ दौड़, पहेलियाँ और जनरल नॉलेज के राउंड होते हैं।
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रोहन दौड़ में तेज था लेकिन पढ़ाई में कमजोर, जबकि समीर पढ़ाई में होशियार था पर दौड़ में रुचि नहीं थी। दोनों ने एक-दूसरे की मदद करने का फैसला किया ताकि प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन कर सकें।
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प्रतियोगिता के पहले राउंड में जनरल नॉलेज क्विज़ था, जिसमें समीर ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और रोहन ने भी अच्छा किया।
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दूसरे राउंड में, दोनों ने मिलकर कठिन पहेलियाँ हल कीं और अगले राउंड में पहुंचे।
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अंतिम राउंड 100 मीटर दौड़ का था। दौड़ के दौरान, रोहन का पैर फिसल गया और वह गिर पड़ा। समीर ने दौड़ छोड़कर रोहन की मदद की।
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समीर ने दोस्ती को ट्रॉफी से ऊपर रखा और रोहन की सहायता की, जिससे दोनों ने धीरे-धीरे फिनिश लाइन पार की।
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इस घटना ने सभी का दिल जीत लिया और स्कूल के प्रिंसिपल ने इसे असली जीत बताया, जो ट्रॉफी से नहीं बल्कि इंसानियत और रिश्तों से जुड़ी होती है।
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रोहन और समीर को "बेस्ट टीम" अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, जिससे यह साबित हुआ कि हार में भी जीत छिपी होती है।
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कहानी का संदेश है कि असली जीत अच्छे इंसान बनने में है, और यह प्रेरणादायक है कि कभी-कभी हार में भी बड़ी जीत छिपी होती है।
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