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यह कहानी एक राजा और दो मूर्तिकारों की है, जिसमें एक अद्भुत पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाने की चुनौती दी जाती है।
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राजा विक्रम सिंह ने अपने राज्य के सबसे प्रसिद्ध मूर्तिकार अर्जुन को यह काम सौंपा, जिनसे अपेक्षा थी कि वे इसे सात दिनों में पूरा करेंगे।
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अर्जुन ने पत्थर पर पचास बार प्रहार किया लेकिन पत्थर नहीं टूटा, जिससे वह हताश हो गए और काम छोड़ दिया।
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महामंत्री ने वही पत्थर एक साधारण मूर्तिकार रामू को दिया, जिन्होंने पहले ही प्रहार में पत्थर को दो टुकड़ों में तोड़ दिया।
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रामू ने प्रतिमा बनाने का काम खुशी-खुशी शुरू किया और समय पर पूरा करके राजा को सौंप दिया।
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कहानी का मुख्य संदेश है कि सफलता अक्सर हमारे आखिरी प्रयास पर निर्भर करती है और हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।
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अर्जुन की असफलता और रामू की सफलता यह सिखाती है कि एक अंतिम प्रयास कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी सफलता ला सकता है।
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यह कहानी प्रेरणा देती है कि जब हमें लगे कि अब और नहीं हो सकता,
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तब शायद वही आखिरी मौका हो, जो सफलता दिला सकता है।
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