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यह कहानी एक आलसी बंदर चंचल की है, जो अपनी लापरवाही और घमंड के कारण मुसीबत में पड़ जाता है। यह हमें समय का सही उपयोग करने की महत्वपूर्ण सीख देती है।
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जंगल में पानी की भारी कमी के चलते सभी जानवर मिलकर एक गहरा कुआँ खोदने का निर्णय लेते हैं, जिससे वे पानी की कमी का समाधान कर सकें।
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चंचल बंदर अपने आलस और घमंड के कारण जानवरों की मदद करने से मना कर देता है और सोचता है कि वह अकेले ही पानी ढूंढ लेगा।
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सभी जानवरों की मेहनत रंग लाती है और वे एक गहरा कुआँ खोदने में सफल होते हैं, जिससे उन्हें साफ पानी मिलता है और उनकी प्यास बुझती है।
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दूसरी ओर, चंचल को जब बहुत प्यास लगती है तो उसे कहीं भी पानी नहीं मिलता और वह परेशान होकर बाकी जानवरों के पास लौटता है।
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चंचल अपनी गलती मानता है और जानवरों से माफी मांगता है, लेकिन उसे यह सीख मिलती है कि समय पर काम करना कितना महत्वपूर्ण होता है।
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कहानी की मुख्य सीख यह है कि आलस और घमंड से बचकर समय पर काम करना चाहिए, क्योंकि एकता और मेहनत से बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है।
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बूढ़ा कछुआ धीरु की कही बात "अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत" इस कहानी का सार है, जो बताता है कि मौका निकल जाने पर पछताने का कोई फायदा नहीं।
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यह कहानी बच्चों को नैतिकता और समय प्रबंधन की महत्वपूर्ण सीख देती है, जो उनके जीवन में काम आएगी।
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