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यह कहानी रमेश नामक एक हैडमास्टर की है, जो स्कूल की छुट्टी के बाद अपने घर लौटते समय स्कूटर के पंचर होने पर एक ऑटो रिपेयर की दुकान पर पहुँचता है।
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दुकान पर एक लड़का रमेश का स्कूटर ठीक करता है। बाद में, रमेश को पता चलता है कि यह लड़का उसका पूर्व शिष्य है, जिसने आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ दी थी।
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बुजुर्ग दुकान मालिक रमेश को बताते हैं कि लड़के ने उनकी शिक्षा से बहुत कुछ सीखा है और वह ईमानदार और मेहनती है।
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रमेश लड़के को उसके काम की कीमत देने की कोशिश करता है, लेकिन बुजुर्ग उसे समझाते हैं कि लड़के को रमेश से यह काम करके खुशी मिलती है।
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बुजुर्ग का कहना है कि ईश्वर ने हाथ दिए हैं, लेकिन काम करने का हुनर गुरु से मिलता है, जो हाथों की असली कीमत बढ़ाता है।
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रमेश इस बात से भावुक हो जाता है और लड़के को गले लगाता है, जिससे उसे गर्व महसूस होता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि असली मूल्य हमारे हाथों में नहीं, बल्कि हमारे हुनर में होता है, जो हमें गुरु से मिलता है।
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सही गुरु हमें जीवन की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार करते हैं
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और सफलता की ओर ले जाते हैं।
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