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तिब्बत के घने जंगल में दो उल्लू रहते थे जो जीवन की गहराइयों पर चर्चा करते थे। एक दिन वे अपने-अपने शिकार के साथ पेड़ पर आए।
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एक उल्लू सांप पकड़कर लाया था जबकि दूसरा चूहा लेकर आया। दोनों शिकार को देखकर खुश थे, लेकिन सांप ने चूहे को देखकर फुफकारना शुरू कर दिया, जिससे चूहा डर गया।
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चूहा मौत के डर से कांपने लगा, जबकि सांप भी उल्लू के मुंह में फंसा हुआ था। दोनों शिकार अपने डर के कारण बेचैन थे।
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पहले उल्लू ने दूसरे से पूछा कि यह भय क्यों है जब दोनों मरने वाले हैं। दूसरे उल्लू ने बताया कि असली डर उनके अंदर की असुरक्षा और लालच का है।
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दूसरे उल्लू ने समझाया कि मौत से ज्यादा भयावह हमारे स्वार्थ, लालच और इच्छाएं हैं, जो हमें अंधा बनाते हैं।
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पहले उल्लू ने सहमति जताई कि इच्छाओं और डर के कारण हम गलतियां कर बैठते हैं, जबकि शांत रहकर हम इनसे बच सकते हैं।
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कहानी से सीख मिलती है कि यदि हम अपनी इच्छाओं और डर को समझ लें, तो जीवन को बेहतर तरीके से जी सकते हैं।
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नैतिक शिक्षा यह है कि भय और लालच को दूर रखकर ही सच्चा आनंद प्राप्त किया जा सकता है।
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भय और लालच को अपने जीवन से दूर रखकर ही सच्चा आनंद पाया जा सकता है।
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