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यह कहानी राजा रणवीर और एक बूढ़े संत की है, जो राजा को सच्चे जीवन का अर्थ सिखाते हैं। संत ने राजा को बताया कि भौतिक सुखों से बढ़कर सेवा और भक्ति है।
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राजा रणवीर को नई चीजें सीखने का जुनून था। एक दिन साधारण वेश में प्रजा के बीच घूमते हुए उसने एक वृद्ध व्यक्ति से मुलाकात की।
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वृद्ध व्यक्ति ने राजा को बताया कि उसकी असली उम्र 4 साल है, क्योंकि उसने 4 साल पहले भक्ति और सेवा का जीवन शुरू किया था।
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वृद्ध ने पहले 76 साल भौतिक सुखों में बिताए और संत के उपदेश के बाद उसे असली जीवन का एहसास हुआ।
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राजा को संत की बातों से गहरा प्रभाव पड़ा और उसका नजरिया बदल गया। उसने अपने राज्य में दान और धर्म का मार्ग अपनाने का फैसला किया।
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राजा ने महल में एक धर्मशाला बनवाई, जहाँ गरीबों को भोजन और दवाइयाँ मिलने लगीं, जिससे राज्य में खुशहाली फैल गई।
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राजा ने अपनी बेटी को बताया कि सच्ची खुशी देने में है, लेने में नहीं।
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कहानी का मुख्य संदेश यह है कि जीवन में सच्ची शक्ति और खुशी भक्ति और दूसरों की मदद से आती है।
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स्वार्थ छोड़कर सेवा का रास्ता अपनाना ही असली जीत है।
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