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यह कहानी चपला नामक लोमड़ी की है, जो अपनी चालाकी से जंगल की अन्य लोमड़ियों को गुमराह करती है।
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एक दिन चपला की पूंछ शिकारी के जाल में फंसकर कट जाती है, जिससे वह जंगल की इकलौती बिना पूंछ वाली लोमड़ी बन जाती है।
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चपला अपनी स्थिति से शर्मिंदा न होते हुए, अन्य लोमड़ियों को भी जाल में फंसाने के लिए "दिव्यलोक" देखने का झांसा देती है।
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उसकी चाल में आकर कई लोमड़ियाँ अपनी पूंछ कटवा बैठती हैं, जिससे जंगल में अफरा-तफरी मच जाती है।
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बूढ़ी लोमड़ी कमला को इस चालाकी का भेद समझ में आता है और वह सबको सच बताती है।
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कमला के समझाने पर चपला को अपनी गलती का अहसास होता है और वह माफी मांगती है।
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चपला अपनी चालाकी को अच्छे काम में लगाती है और जंगल को सुरक्षित बनाने में मदद करती है।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी से अस्थायी खुशी मिल सकती है,
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लेकिन सच्चाई और भलाई ही स्थायी संतोष देती है।
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