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यह कहानी 'सुखपुर' गाँव के एक मेहनती लड़के रमेश की है, जो अपनी माँ के साथ रहता था और ईमानदारी से छोटे-मोटे काम करके जीवन यापन करता था।
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रमेश की ईमानदारी का उदाहरण यह है कि वह कभी गलती से मिले ज्यादा पैसे लौटा देता और खोया सामान उसके मालिक को वापस कर देता था, जिससे गाँव वाले उसकी तारीफ करते थे।
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शहर में नौकरी की तलाश में रमेश को कई दिनों तक भटकना पड़ा, लेकिन कोई काम नहीं मिला, जिससे वह भूखा रहने लगा।
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एक दिन रमेश ने एक भारी बैग देखा जिसमें बहुत सारे नोट और सोने के गहने थे, लेकिन उसने अपनी माँ और गाँव की सीख को याद कर बैग का मालिक ढूंढने का निश्चय किया।
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बैग के मालिक, सेठ धनपाल, को बैग लौटा कर रमेश ने ईमानदारी का परिचय दिया और सेठ जी उसकी ईमानदारी से प्रभावित होकर उसे अपनी दुकान में काम पर रख लिया।
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रमेश ने सेठ जी की दुकान पर पूरी लगन और ईमानदारी से काम किया, जिससे उसे तरक्की मिली और वह सेठ जी का सबसे खास आदमी बन गया।
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कुछ सालों में, सेठ धनपाल ने अपनी सारी जिम्मेदारी रमेश को सौंप दी, जिससे रमेश शहर का सम्मानित और सफल व्यापारी बन गया।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि ईमानदारी सबसे बड़ा गुण है और हमें कभी भी लालच में आकर गलत काम नहीं करना चाहिए।
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छोटे-छोटे ईमानदार काम हमें समाज में सम्मान और विश्वास दिलाते हैं, और अंत में जीवन में बड़ा इनाम और सच्ची सफलता मिलती है।
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बच्चों को यह याद रखना चाहिए कि ईमानदारी की ताकत सबसे बड़ी ताकत होती है।
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