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कहानी "इक फूल की तरह" में सौमित्र बाबू और सोमेन्द्र की दोस्ती का जिक्र है। सौमित्र बाबू उम्र में सोमेन्द्र के पिता के बराबर थे, लेकिन वे सोमेन्द्र के सबसे अच्छे मित्र थे।
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सौमित्र बाबू का स्वभाव ऐसा था कि वे सभी के मित्र थे, और उनका नाम 'सौमित्र' की जगह 'सब-मित्र' होना चाहिए था, ऐसा सोमेन्द्र का मानना था।
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सौमित्र बाबू का जीवन उद्देश्य था मीठा बोलना, प्रेम करना और सबकी सहायता करना। वे लोगों के बीच घिरे रहते थे और सुबह कंपनी-बाग में टहलते थे।
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सोमेन्द्र एक गरीब विधवा माँ का बेटा था, जिसकी माँ का सपना था कि उसका बेटा पढ़-लिख कर कुछ बड़ा करे।
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एक दिन, सोमेन्द्र कंपनी-बाग में फूलों की क्षणभंगुरता पर विचार कर रहा था, तभी सौमित्र बाबू ने उसे जीवन की सच्चाई सिखाई कि जीवन लंबा नहीं, बल्कि बड़ा होना चाहिए।
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सौमित्र बाबू ने सोमेन्द्र की पढ़ाई का खर्च उठाने का संकल्प लिया था। वे टाटा की टिस्को कंपनी में काम करते थे और कई असहायों की मदद करते थे।
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एक तूफानी रात में, सौमित्र बाबू का हृदयघात से निधन हो गया। वे अब नहीं रहे,
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लेकिन उनकी मुस्कराहट और परोपकारी जीवन का संदेश सोमेन्द्र के जीवन का हिस्सा बन गया।
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सोमेन्द्र ने संकल्प लिया कि वह भी सौमित्र बाबू की तरह एक परोपकारी जीवन जिएगा और सबकी खुशियों के लिए जीएगा।
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