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गौरी घर में अकेली थी जब दरवाजे पर दस्तक हुई। उसका पति शंकर बाहर गया था और तीन दिन बाद लौटने वाला था।
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एक बुजुर्ग ने खुद को शंकर का चाचा बताकर गौरी का विश्वास जीता और अंदर आया। लेकिन वह चोर निकला और घर की कीमती चीजें लेकर भाग गया।
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कुछ समय बाद, फिर से एक बुजुर्ग आए और खुद को शंकर का चाचा बताया। इस बार गौरी ने सतर्कता बरती और पड़ोसियों की मदद से उन्हें बाहर कर दिया।
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शंकर के लौटने पर, उन्हें पता चला कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में उनका चाचा था, जो अपनी संपत्ति उन्हें देना चाहता था।
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पत्र में लिखा था कि चाचा अमीर हो गए थे और अब सन्यास लेने से पहले अपनी संपत्ति शंकर को देना चाहते थे।
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शंकर और गौरी दोनों को अपनी जल्दबाजी और अविश्वास पर पछतावा हुआ, क्योंकि उन्होंने एक सच्चे रिश्तेदार को खो दिया।
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इस घटना ने उन्हें सिखाया कि बिना सच जाने किसी पर शक नहीं करना चाहिए और लोगों को विवेकपूर्ण तरीके से परखना चाहिए।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि असली और नकली लोगों की पहचान करना बहुत जरूरी है,
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ताकि हम गलत निर्णय न लें और संबंधों को न खोएं।
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