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यह कहानी एक प्रभु भक्त नाविक की है जो रोज सुबह मंदिर जाकर पूजा करता और फिर यात्रियों को नदी के पार ले जाता था। खाली समय में वह ईश्वर का नाम जपता रहता था।
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गांव के लोग उसकी ईश्वर भक्ति को देखकर हैरान होते थे, और कुछ लोग उसका मजाक भी उड़ाते थे। नाविक फिर भी शांत रहता और अपनी प्रार्थना करता था।
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एक दिन, जब नाव में कई युवा लोग बैठे थे, उन्होंने नाविक की प्रार्थना का मजाक उड़ाया क्योंकि मौसम शांत था और उन्हें प्रार्थना की आवश्यकता नहीं लगी।
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अचानक, नदी में एक भयंकर तूफान आ गया और नाव डगमगाने लगी। सभी यात्री डर गए और प्रार्थना करने लगे, लेकिन नाविक ने प्रार्थना नहीं की।
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यात्रियों ने नाविक से नाराजगी जताई कि वह संकट में प्रार्थना नहीं कर रहा। नाविक ने शांतिपूर्वक बताया कि संकट के समय कर्म करना चाहिए और संकट के बाद ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।
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नाविक ने अपनी मेहनत से नाव को संभाल लिया और यात्रियों को सुरक्षित पार पहुंचा दिया। इससे सभी ने नाविक की प्रशंसा की।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि प्रार्थना के साथ-साथ कर्म भी आवश्यक है। मुसीबत के समय केवल प्रार्थना नहीं, बल्कि कर्म करने की भी जरूरत होती है।
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कहानी का मुख्य संदेश है कि ईश्वर की प्रार्थना के साथ अपने कर्तव्यों को निभाना आवश्यक है,
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ताकि हमें सही मार्गदर्शन और शक्ति मिले।
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