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यह कहानी सुरेश और उसके दादा जी के गहरे रिश्ते की है, जो आंगन में लगाए गए आम के पेड़ से जुड़ी है। यह पेड़ दादा जी की यादों और उनके आशीर्वाद का प्रतीक है।
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दादा जी ने सुरेश से वादा लिया था कि वह इस पेड़ का ख्याल रखेगा और इसे अपनी जिम्मेदारी मानेगा। यह पेड़ उनके रिश्ते की निशानी बन गया।
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दादा जी की मृत्यु के बाद, पेड़ की छांव में सुरेश पढ़ाई करता और आराम करता था। यह पेड़ उसे दादा जी की उपस्थिति का एहसास कराता था।
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एक दिन कुछ बच्चों ने पेड़ पर पत्थर फेंके, जिससे सुरेश की माँ को चोट लगी। इसके बाद सुरेश के पिता ने पेड़ काटने का निर्णय लिया।
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सुरेश ने पेड़ को बचाने के लिए अपने पिता को भावनात्मक और तर्कसंगत तरीके से समझाया कि यह पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, बल्कि दादा जी की विरासत है।
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सुरेश ने पेड़ के पर्यावरणीय लाभों को भी बताया, जैसे ठंडी हवा, लकड़ी और पूजा में पत्तियों का उपयोग।
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सुरेश की माँ ने भी पेड़ को न काटने और उसकी सुरक्षा के लिए बाड़ लगाने का सुझाव दिया, जिससे पिता का गुस्सा शांत हुआ।
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अंत में, सुरेश के पिता ने अपनी गलती मानी और पेड़ को न काटने का निर्णय लिया, जिससे सुरेश और उसकी माँ ने राहत की सांस ली।
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यह कहानी हमें बुजुर्गों की विरासत का सम्मान करने, पेड़ के महत्व को समझने और समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान खोजने का सबक देती है।
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