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यह कहानी राघव नामक एक युवक की है, जो अधीरता के कारण बार-बार अपने काम छोड़ देता था। उसकी यह आदत उसके माता-पिता के लिए चिंता का विषय थी।
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राघव के माता-पिता उसे संत विद्या सागर जी से मिलवाते हैं, जो उसे धैर्य की महत्ता सिखाने के लिए आम के बीज बोने का काम देते हैं।
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गुरु जी राघव को समझाते हैं कि जैसे आम का बीज तुरंत फल नहीं देता, वैसे ही कोई भी काम बिना मेहनत, देखभाल और धैर्य के फल नहीं देता।
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राघव को एहसास होता है कि वह हर बार अधीर होकर काम छोड़ देता है और उसे कभी पूरा समय नहीं देता।
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गुरु जी की सीख से प्रेरित होकर, राघव धैर्य और मेहनत को अपनाता है और एक छोटा कपड़े का कारोबार शुरू करता है।
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राघव अपने ग्राहकों के साथ अच्छे संबंध बनाता है, बाजार की समझ बढ़ाता है, और छोटे नुकसानों से हार नहीं मानता।
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धीरे-धीरे राघव का बिजनेस बढ़ने लगता है और कुछ सालों बाद वह कस्बे के सबसे कामयाब कारोबारियों में गिना जाने लगता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि धैर्य और मेहनत सफलता की कुंजी हैं, और अधीरता छोड़कर निरंतर प्रयास करने से बड़े लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है।
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राघव के अनुभव से पता चलता है कि छोटी शुरुआत और निरंतर प्रयास बड़े परिणाम ला सकते हैं।
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अंत में, राघव अपने माता-पिता को गर्व से बताता है कि धैर्य रखने से ही उसे सफलता और इज्जत मिली।
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