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यह कहानी नन्हे सूरज की है, जो दीपावली के दिन मंजू काकी के उदास घर को देखकर परेशान हो जाता है और जानने की कोशिश करता है कि वह क्यों दीपावली नहीं मनातीं।
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सूरज की माँ उसे बताती हैं कि मंजू काकी का बेटा दीपावली की रात एक दुर्घटना में मारा गया था, और उनके पति भी अब नहीं हैं, जिससे वह अकेली रह गईं।
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सूरज अपनी माँ की सलाह पर मंजू काकी के लिए मिठाई और दीये लेकर जाता है, ताकि वह उनके घर में रोशनी और खुशी ला सके।
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सूरज मंजू काकी से पूछता है कि वह दीपावली क्यों नहीं मनातीं, और उन्हें अपना बेटा बनकर दीपावली मनाने के लिए प्रेरित करता है।
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सूरज की मासूमियत और प्यार भरी बातों से प्रभावित होकर मंजू काकी उसके साथ दीये जलाने के लिए तैयार हो जाती हैं।
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सूरज और गाँव के अन्य बच्चे मिलकर मंजू काकी के घर को दीयों से सजाते हैं,
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जिससे घर में फिर से रोशनी और खुशी लौट आती है।
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कहानी से यह सिखने को मिलता है कि दया और प्यार से किसी का दुख कम किया जा सकता है और दूसरों की मदद करने से सच्ची खुशी मिलती है।
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यह कहानी यह भी बताती है कि त्योहारों की खुशी तब बढ़ती है जब हम उन्हें दूसरों के साथ साझा करते हैं।
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