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दिवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है, जो केवल दीये जलाने या मिठाइयाँ खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सच्चाई, अच्छाई और ज्ञान की जीत का प्रतीक है।
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अंजलि और विक्रम, दिल्ली के एक छोटे मोहल्ले में रहते हैं, जो महँगे पटाखों में रुचि रखते हैं, लेकिन उनकी माँ उन्हें दिवाली के असली अर्थ के बारे में समझाने की कोशिश करती हैं।
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बाज़ार में अंजलि और विक्रम को एक बूढ़ी अम्मा दिखती हैं जिनकी मिट्टी के दीयों की दुकान पर भीड़ नहीं है, क्योंकि लोग चाइनीज लाइटों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
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अंजलि अपनी माँ की बात को याद करते हुए, अपने पैसे से अम्मा के सभी मिट्टी के दीये खरीद लेती है, जिससे अम्मा की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह दोनों बच्चों को आशीर्वाद देती हैं।
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दिवाली की शाम को, जब हर जगह महँगी लाइटें जल रही थीं, अंजलि और विक्रम ने अपने घर की बालकनी में मिट्टी के दीये जलाए और उन्हें अनाथ आश्रम और गरीब बच्चों के घरों में भी रखा।
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दीयों की रोशनी चारों ओर फैलने से अंजलि और विक्रम को अद्भुत शांति और खुशी महसूस हुई, जो किसी भी पटाखे के शोर से ज्यादा मीठी थी।
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माँ ने बच्चों को गले लगाकर कहा कि यही दिवाली का असली अर्थ है, जब हम अपनी खुशी बाँटते हैं, तभी हमें सच्ची रोशनी मिलती है।
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कहानी से दो महत्वपूर्ण सीखें मिलती हैं: सच्ची खुशी बांटने में है और सादापन में सुंदरता होती है। मिट्टी के दीये किसी की आजीविका का साधन थे।
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इस दिवाली, हमें भी अंजलि और विक्रम की तरह खुशी बाँटने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम दूसरों के जीवन में उजाला ला सकें।
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