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हरे-भरे जंगल में राजा बहादुर नामक एक शक्तिशाली शेर रहता था, जिसे उसकी प्रजा बहुत प्यार करती थी। उसके चार खास दरबारी थे: एक लोमड़ी, एक भेड़िया, एक चीता और एक चील, जो उसकी चापलूसी करके अपना काम निकालते थे।
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ये चारों दरबारी खुद को राजा का वफादार सेवक मानते थे, लेकिन असल में वे सिर्फ अपने फायदे के लिए उसकी तारीफ करते थे। जंगल के बाकी जानवर उन्हें "चापलूसी गैंग" कहते थे।
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एक दिन, जब राजा शिकार पर निकला, तो चापलूसी गैंग ने एक ऊँट को जंगल की सीमा पर देखा और राजा को उसके बारे में बताया। उन्होंने राजा को ऊँट का शिकार करने के लिए उकसाया।
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ऊँट कमजोर और उदास था। राजा ने उसकी हालत देखकर उसे अभयदान दिया और उसे अपने साथ रहने की अनुमति दी, जिससे चापलूसी गैंग निराश हो गया।
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कुछ दिनों बाद, राजा बहादुर एक हाथी से लड़ाई में घायल हो गया और शिकार के लिए अक्षम हो गया। चापलूसी गैंग भूखी थी और उन्होंने राजा को बहकाने की योजना बनाई।
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चापलूसी गैंग ने राजा के सामने एक नाटक किया, जिसमें वे खुद को राजा के खाने के लिए प्रस्तुत करते हैं, लेकिन असल में वे ऊँट को मारने की योजना बना रहे थे।
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ऊँट ने राजा की भूख मिटाने के लिए खुद को प्रस्तुत किया, लेकिन चापलूसी गैंग ने अवसर का लाभ उठाकर ऊँट को मार डाला।
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इस कहानी का सार यह है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। सच्चे दोस्त वही होते हैं जो बुरे वक्त में साथ दें, न कि वो जो सिर्फ फायदा उठाने के लिए मीठी बातें करें।
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कहानी हमें सिखाती है कि चापलूसी और धोखा देने वालों से दूर रहना ही बुद्धिमानी है। सच्ची दोस्ती का मूल्य पहचानना महत्वपूर्ण है।
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