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एक नवयुवक गाँव में विद्यालय की शिक्षा पूरी कर लौटता है और अपने ज्ञान का अहंकार करने लगता है, जिससे वह विनम्रता का महत्व भूल जाता है।
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उसके पिता को बेटे के अहंकार की चिंता होती है और वे उसे एक महत्वपूर्ण सीख देने का निर्णय लेते हैं।
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पिता चीनी को धूल में मिलाकर आंगन में छोड़ देते हैं, जिससे छोटे बच्चे चीनी को अलग करने का प्रयास करते हैं लेकिन असफल रहते हैं।
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बड़े भाई से मदद मांगी जाती है, लेकिन वह भी अपने ज्ञान के घमंड में चीनी को अलग करने में असमर्थ रहता है।
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अंत में, चींटियाँ धीरे-धीरे सारी चीनी उठा ले जाती हैं, जिससे युवक को धैर्य और मेहनत का महत्व समझ आता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि अहंकार इंसान की तरक्की को रोकता है और हमें चींटियों से धैर्य, मेहनत और संगठित होकर काम करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
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सच्चे ज्ञान की पहचान यह है कि वह व्यक्ति को विनम्र और सीखने की ललक वाला बनाता है।
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जीवन में सफलता पाने के लिए हमेशा नई चीज़ें सीखने के लिए तैयार रहना और विनम्र बने रहना आवश्यक है।
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अहंकार को दूर करने के लिए खुद को सुधारने की कोशिश जारी रखनी चाहिए और दूसरों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
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कहानी का संदेश है कि विनम्रता ही असली बुद्धिमानी है और प्रगति के लिए हमें कभी सीखना बंद नहीं करना चाहिए।
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