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राजू और मोहन की दोस्ती पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध थी, दोनों साथ में स्कूल जाते, खेलते और पढ़ाई करते थे।
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स्कूल में एक बड़ी क्विज़ प्रतियोगिता की घोषणा हुई, जिसमें भाग लेने के लिए दोनों दोस्त उत्सुक थे, लेकिन समस्या यह थी कि टीम में केवल एक ही छात्र का चयन हो सकता था।
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टीचर ने यह निर्णय राजू और मोहन पर छोड़ दिया कि वे आपस में तय करें कि कौन प्रतियोगिता में भाग लेगा।
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राजू तेज़ और बुद्धिमान था, जबकि मोहन की सामान्य जानकारी अच्छी थी। दोनों ने एक-दूसरे की काबिलियत को समझा, लेकिन फैसला करना कठिन था।
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राजू ने सोचा कि अगर मोहन को अवसर दिया तो वह हार सकता है, लेकिन खुद जाने से दोस्ती पर असर पड़ सकता था।
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अगले दिन, राजू ने अपनी चिंताओं को मोहन के सामने रखा। मोहन ने कहा कि जीत से ज्यादा दोस्ती की कदर करनी चाहिए, और राजू को प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
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मोहन की बात सुनकर राजू को सच्ची दोस्ती का अर्थ समझ में आया, जिसमें जीत-हार से ज्यादा एक-दूसरे की भलाई मायने रखती है।
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राजू ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और जीत हासिल की। उसने मोहन को गले लगाकर कहा कि यह जीत उनकी दोस्ती की जीत है।
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कहानी की सीख यह है कि सच्ची दोस्ती में जीत और हार से ऊपर उठकर एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों को समझना सबसे महत्वपूर्ण होता है।
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