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देव शर्मा नामक एक साधु, जो शहर से दूर एक मंदिर में रहता था, लोगों के बीच चर्चित और सम्मानित था।
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लोग उपहार, खाद्य सामग्री और पैसे लेकर उनसे मिलने आते थे, लेकिन साधु इन वस्तुओं को बेचकर पैसे इकट्ठा करते थे।
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साधु किसी पर भरोसा नहीं करते थे और अपने पैसों को एक थैले में जमा कर हमेशा अपने साथ रखते थे।
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एक चोर ने साधु का थैला चुराने की योजना बनाई और साधु का शिष्य बनकर उनके विश्वास को जीतने की कोशिश की।
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चोर ने साधु की सेवा करते हुए उनकी आराधना में मदद की, लेकिन वह साधु का थैला चुरा नहीं पाया।
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जब साधु को एक भक्त के घर पूजा के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने चोर को थैले की देखभाल करने का आदेश दिया।
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चोर ने मौका पाकर थैला चुरा लिया और भाग गया। साधु ने उसका पीछा किया, लेकिन चोर को नहीं पकड़ पाए।
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बाद में, चोर को पुलिस ने शहर में पकड़ा और साधु को उनका थैला वापस मिल गया। चोर को जेल भेज दिया गया।
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यह कहानी बच्चों के लिए मनोरंजक है और यह दिखाती है कि धोखा देना अंततः पकड़ा ही जाता है।
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