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महाराणा प्रताप अकबर की सेना के साथ युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए थे और अरावली के गहरे जंगलों में एक झोपड़ी में छिपे हुए थे, जहाँ भील जाति का चिकित्सक गजराज सिंह उनकी चिकित्सा कर रहा था।
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भील सरदार महाराणा की सुरक्षा में तैनात थे और चारों ओर गुप्तचरों का जाल बिछा हुआ था, जिससे अकबर के दरबार की हर खबर महाराणा तक पहुँच रही थी।
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अकबर के दरबार में मान सिंह ने सुझाव दिया कि महाराणा प्रताप पर हमला किया जाए, जिससे अकबर को हैरानी हुई और उसने इसे युद्ध और प्रेम में जायज़ बताया।
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मान सिंह ने अपनी सेना को महाराणा पर हमला करने के लिए तैयार किया और अरावली की ओर बढ़ा, लेकिन भील गुप्तचरों ने इसकी सूचना पहले ही अपने सरदारों तक पहुँचा दी।
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भील सरदारों ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन उनकी चिंता थी कि महाराणा को युद्ध की जानकारी न लगे, क्योंकि इससे उनके घाव और बढ़ सकते थे।
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एक बूढ़े भील सरदार ने एक योजना बनाई, जिसमें सेना के आने वाले मार्ग पर लकड़ियों के ढेर के साथ जहरीले सांप और जानवरों के खुर मिलाए गए।
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हवा की दिशा का फायदा उठाते हुए, लकड़ियों को आग लगा दी गई और विषैला धुआँ मुगल सेना की ओर भेजा गया, जिससे उनके सैनिक, घोड़े और हाथी अंधे और दर्द से चीखने लगे।
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विषैले धुएँ के कारण मुगल सेना को भागना पड़ा और हाथी-घोड़े अपनी ही सेना को रौंदते चले गए, जिससे मैदान खाली हो गया।
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इस चालाकी से भील सरदार बहुत खुश हुए और जब महाराणा ने यह सुना, तो उन्होंने उस भील सरदार को गले से लगा लिया।
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अकबर को जब इस घटना की सूचना मिली, तो मान सिंह की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है कि अकबर ने उसके साथ क्या किया होगा।
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