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गांव के किनारे एक बड़ा घर था जिसमें रामू नाम का आदमी रहता था, जिसकी भूख इतनी बड़ी थी कि गांव भर में उसकी भूख के चर्चे होते थे।
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रामू की भूख को लोग "ऊंट के मुंह में जीरा" जैसा कहते थे, क्योंकि उसका पेट कभी भरता नहीं था।
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एक दिन गांव के मुखिया ने एक दावत का आयोजन किया, जहां रामू को बहुत कम खाना मिला, जिससे वह हैरान रह गया।
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मुखिया ने रामू को सलाह दी कि अगर उसकी भूख बड़ी है, तो उसे खुद मेहनत करके खाना उगाना चाहिए।
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रामू ने मुखिया की बात को समझा और खेत किराए पर लेकर खुद मेहनत से अनाज उगाना शुरू कर दिया।
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उसकी मेहनत रंग लाई, और अब उसके पास इतना अनाज था कि वह दूसरों को भी खिलाने लगा।
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रामू की इस मेहनत से गांव वाले खुश हुए और रामू ने सीखा कि सिर्फ मांगने से कुछ नहीं मिलता, मेहनत खुद करनी होती है।
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कहानी का संदेश यह है कि बड़ी चीजों की चाह रखने वालों को अपने प्रयासों से अपने सपने साकार करने चाहिए,
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क्योंकि मेहनत ही सच्ची संतुष्टि देती है।
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