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यह कहानी एक ऐसे समय की है जब विज्ञान और तकनीक का विकास उतना नहीं हुआ था जितना आज है, और हाथी का वजन तोलना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
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एक राजा, जो बीमार पड़ गया था, ने घोषणा की कि जो भी उसे ठीक करेगा, उसे हाथी के वजन के बराबर सोने की मोहरें दी जाएंगी।
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एक वैद्य ने राजा का इलाज सफलतापूर्वक किया, जिसके बाद राजा ने उसे हाथी के वजन के बराबर सोने की मोहरें देने की ठानी।
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मंत्री और राज्य के विद्वान इस समस्या को हल नहीं कर पाए कि हाथी का वजन कैसे तौला जाए।
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एक केवट, जो नदी के किनारे नाव चलाता था, ने हाथी का वजन तौलने का उपाय सुझाया।
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केवट ने हाथी को नाव पर चढ़ाया और जहाँ तक नाव पानी में डूबी,
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वहाँ तक निशान लगा दिया, फिर उसी स्तर तक नाव में सोने की मोहरें भर दीं।
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इस तरह केवट ने हाथी के वजन के बराबर सोने की मोहरों का पता लगाया, जिसे राजा ने वैद्य को दे दिया।
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राजा ने केवट की बुद्धिमानी से प्रभावित होकर उसे भी इनाम में सोने की मोहरें दीं।
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