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सरयू अकबर पुर में रहने वाला एक गरीब व्यक्ति था, जो लकड़ी बेचकर अपनी जीविका चलाता था। एक दिन जंगल में आग लगी और उसने एक नाग को बचाया, जिसने उसे बहुमूल्य रत्नों से भरी घाटी तक पहुँचाया।
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नाग ने सरयू से कहा कि वह जितना चाहे उतना रत्न ले सकता है, लेकिन उसे अपनी जरूरत से ज्यादा धन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
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सरयू ने रत्नों से बहुत सारा धन इकट्ठा किया और गाँव का सबसे अमीर आदमी बन गया। उसने पक्का मकान बनवाया, जानवर खरीदे और ग्राम पंचायत का मुखिया बन गया।
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अधिक धन की लालसा में उसने जमींदार बनने का सपना देखा और ठाकुर विजय प्रताप सिंह से उनकी जमींदारी खरीदने का समझौता किया।
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ठाकुर ने चालाकी से सरयू का सारा धन ले लिया और उसे जमींदार बनने का झांसा दिया, जबकि वास्तव में जमींदारी का क्रय-विक्रय ब्रिटिश सरकार की अनुमति के बिना असंभव था।
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सरयू को अदालत में बुलाया गया, जहाँ उस पर आरोप लगाया गया कि उसने धोखे से जमींदारी पर कब्जा किया है।
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अदालत में सरयू ने नाग वाली घटना बताई, लेकिन मजिस्ट्रेट ने इसे कहानी मानकर नहीं माना और उसे जेल की सजा सुनाई।
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अंत में, सरयू को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने नाग की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया
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और अपनी जरूरत से ज्यादा धन का उपयोग करने की कोशिश की।
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