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सुदामा और भगवान कृष्ण बचपन के मित्र थे। सुदामा का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जबकि कृष्ण एक अमीर परिवार में पैदा हुए थे। इसके बावजूद, उनकी दोस्ती में कभी भी अमीरी-गरीबी की वजह से दरार नहीं आई।
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वर्षों तक सुदामा और कृष्ण के बीच कोई बातचीत नहीं हुई, दोनों अलग-अलग रहे। इस दौरान कृष्ण द्वारका के राजा बन गए थे, जबकि सुदामा अब भी गरीब ब्राह्मण ही थे।
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सुदामा की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी, जिससे उनकी पत्नी ने उन्हें कृष्ण से मिलकर मदद मांगने की सलाह दी। पहले तो सुदामा ने मना कर दिया, लेकिन बाद में सहमत हो गए।
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सुदामा ने कृष्ण के पास जाते समय एक कपड़े में कुछ चावल बांध लिए। कृष्ण अपने मित्र को देखकर बेहद खुश हुए और उनका स्वागत किया।
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कृष्ण के प्यार और आतिथ्य से सुदामा अपने दुख भूल गए। हालांकि, कृष्ण ने समझ लिया कि सुदामा किसलिए आए हैं और उनसे चावल मांगे।
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जैसे ही कृष्ण ने चावल खाए, सुदामा का घर महल में बदल गया। कृष्ण ने उन्हें लक्ष्मी की मूर्ति भी भेंट की।
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जब सुदामा घर लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनकी झुग्गी की जगह एक सुंदर महल खड़ा है। उनकी पत्नी भी अच्छे कपड़े और जेवर में थी।
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सुदामा को समझ आ गया कि यह सब कृष्ण की कृपा से हुआ है।
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उन्होंने कृष्ण को इस उपहार के लिए धन्यवाद दिया और अच्छी जिंदगी बिताने लगे।
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