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बहुत समय पहले सूरतगढ़ नामक एक छोटे से राज्य में सनकी स्वभाव के राजा सनक सिंह का शासन था, जो अक्सर अजीबोगरीब फैसले लिया करते थे।
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राजा ने अपने मंत्री चतुरसेन के साथ राज्य में ईमानदार लोगों को खोजने की योजना बनाई और एक झोपड़ी में 100 स्वर्णमुद्राओं की थैली फेंक दी।
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रघु नामक एक निर्धन व्यक्ति, जिसने थैली पाई, ने ईमानदारी से उसे राजमहल में लौटाया, जिससे राजा ने उसे पुरस्कार स्वरूप 200 स्वर्णमुद्राएं दीं।
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रघु की ईमानदारी के उदाहरण के बाद, कई और लोग भी स्वर्णमुद्राएं लौटाने लगे, और राजा ने उन्हें भी दोगुना पुरस्कार देना शुरू कर दिया।
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मंत्री को यह देखकर संदेह हुआ और उसने एक गुप्तचर को मामले की जांच करने के लिए भेजा।
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गुप्तचर ने पता लगाया कि रघु और अन्य लोग राजा को धोखा दे रहे थे और आपस में स्वर्णमुद्राओं को बांट रहे थे।
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मंत्री ने राजा को रघु की चालाकी से अवगत कराया, जिससे राजा ने रघु को माफ कर दिया और उससे स्वर्णमुद्राएं वापस राजकोष में जमा करने का आदेश दिया।
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इस घटना के बाद, राजमहल में ईमानदार लोगों का आना बंद हो गया,
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और राजा ने अपनी सनक पर नियंत्रण रखने की सीख ली।
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