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होली के अवसर पर विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अपने दरबार में मूर्खश्रेष्ठ का पुरस्कार देते थे, जिसे हर बार तेनालीराम जीत जाता था।
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इस बार कुछ दरबारियों ने योजना बनाई कि तेनालीराम को इतना भांग पिला दी जाए कि वह होली के दिन दरबार में न आ सके।
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तेनालीराम को भांग पिलाई गई, जिससे वह घर पर ही सोया रहा और दरबार में देर से पहुंचा।
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दरबार में देर से और बुरी हालत में पहुंचने पर राजा ने तेनालीराम को डांटा, जिसे सुनकर तेनालीराम की आंखें चमक उठीं।
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तेनालीराम ने राजा और दरबारियों से कहा कि वे उसे महामूर्ख कहें, जिससे वह पुरस्कार जीत सके।
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दरबारियों ने राजा की हां में हां मिलाई और तेनालीराम को महामूर्ख कह दिया।
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इस तरह तेनालीराम ने दरबारियों की योजना को विफल करते हुए फिर से मूर्खश्रेष्ठ का पुरस्कार जीत लिया।
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तेनालीराम की चतुराई और बुद्धिमानी ने उसे एक बार फिर से विजयी बना दिया,
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जबकि विरोधियों को हार का सामना करना पड़ा।
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