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लाला पीतांबरलाल धरमपुरा रियासत के दीवान थे, जिन्हें प्रजा और राजा दोनों का सम्मान प्राप्त था। वे न्यायप्रिय और जनता के सुख-दुख में हमेशा तत्पर रहते थे।
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राजा शिवपालसिंह धर्मप्रिय और प्रजा के हित में काम करने वाले थे। दीवान पीतांबरलालजी राजा की ओर से रियासत के सभी मामलों का निपटारा करते थे।
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एक रात राजा के दूत ने दीवान साहब को पड़ोस के राज्य में राजकुमारी के विवाह में शामिल होने का आदेश दिया। दीवान साहब बिना किसी तैयारी के सुबह जल्दी निकल पड़े।
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विवाह समारोह में सभी राजा और उनके प्रतिनिधि महंगे उपहार लेकर आए थे। दीवान पीतांबरलाल बिना तैयारी के वहां पहुंचे और उन्हें उपहार देने की चिंता हुई।
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बिना झिझक के, दीवान साहब ने अपनी रियासत के दो गांव उपहार में देने की घोषणा कर दी, जिससे वहां के दरबारी हैरान रह गए।
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वापसी पर दीवान साहब को चिंता थी कि राजा शिवपालसिंह नाराज होंगे क्योंकि उन्होंने बिना पूछे दो गांव उपहार में दे दिए थे।
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राजा शिवपालसिंह ने दीवान की वफादारी और उनकी आन-बान-शान को बचाने के लिए उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दो गांव क्या, पांच गांव भी दे दिए होते तो दुख नहीं होता।
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राजा ने दीवान पीतांबरलाल को उनकी वफादारी के पुरस्कार स्वरूप एक गांव की कर वसूली की संपूर्ण आय प्रति माह देने की घोषणा की।
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यह कहानी वफादारी और सम्मान की प्रतिष्ठा की महत्वपूर्णता को दर्शाती है, जहां दीवान साहब ने अपनी सूझबूझ और साहस से राजा की शान को बचाया।
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