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महाराज कृष्णदेव पड़ोस के राज्य पर विजय प्राप्त कर विजयनगर लौटे और इस जीत को यादगार बनाने के लिए विजय स्तंभ बनवाने का निर्णय लिया।
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महाराज ने राज्य के सबसे हुनरमंद शिल्पकार को बुलवाया और विजय स्तंभ बनाने का कार्य सौंपा, जिसे शिल्पकार ने मेहनत से पूरा किया।
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शिल्पकार की कला से प्रभावित होकर महाराज ने उसे इनाम मांगने को कहा, लेकिन शिल्पकार ने स्वाभिमान और बुद्धिमत्ता के साथ एक खाली झोला दुनिया की सबसे कीमती वस्तु से भरने को कहा।
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महाराज ने हीरे-जवाहरात से झोला भरने की बात कही, लेकिन शिल्पकार ने इसे सबसे कीमती मानने से इनकार कर दिया।
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तेनालीराम को दरबार में बुलाया गया, जिन्होंने शिल्पकार के झोले को हवा से भरकर उसे लौटा दिया, यह समझाते हुए कि हवा दुनिया की सबसे कीमती वस्तु है।
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तेनालीराम की बात से सभी सहमत हो गए कि हवा के बिना जीवन संभव नहीं है, इसलिए यह सबसे कीमती है।
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शिल्पकार ने तेनालीराम को प्रणाम किया और सभा से विदा लिया।
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इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सबसे मूल्यवान वस्तुएं अक्सर वे होती हैं
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जिन्हें हम रोजमर्रा की जिंदगी में नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे कि हवा।
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