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यह कहानी पुराने समय की है जब गांव में मुंशी सजधज लाल नाम के सज्जन रहते थे, जो हमेशा रेशमी कुर्ता, साफ-सुथरी धोती और चमकीली पगड़ी पहनते थे, जिससे वे अमीर दिखते थे।
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मुंशी जी का गांव में अच्छा खासा रौब था, विशेषकर बच्चों पर, जिन्हें वे अक्सर बिना गलती के सजा देते थे, जिससे बच्चे उनसे नाराज रहते थे।
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बच्चों ने मुंशी जी को चिढ़ाने की आदत डाल ली थी, और उनका नाम 'मुंशी बकझक लाल' रख दिया था, क्योंकि वह बच्चों को डांटते-डपटते रहते थे।
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एक दिन बच्चों ने मुंशी जी को परेशान करने की योजना बनाई और गांव के बाहर एक खेत में छिप गए, जहां से उन्होंने मुंशी जी को चिढ़ाना शुरू किया।
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मुंशी जी बच्चों के पीछे दौड़ने लगे, और इस प्रक्रिया में उनके जूते और पगड़ी भी गिर गए, लेकिन उन्होंने बच्चों का पीछा करना नहीं छोड़ा।
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अंततः थकावट और गुस्से के कारण मुंशी जी गिर गए, जिससे बच्चे उन्हें और चिढ़ाने लगे और कहने लगे, "मुंशी जी गिरे धड़ाम ले लो हम सबका सलाम।"
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यह कहानी बच्चों की चंचलता और मुंशी जी की हास्यप्रद स्थितियों का चित्रण करती है, जो बच्चों की शरारतों का शिकार बनते हैं।
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कहानी यह भी दर्शाती है कि कैसे बच्चों की मासूम शरारतें कभी-कभी बड़ों को असहज स्थिति में डाल सकती हैं,
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लेकिन अंत में सभी के चेहरे पर मुस्कान लाती हैं।
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