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छत्रपति शिवाजी और मुगल बादशाह औरंगजेब के बीच हमेशा से तनावपूर्ण संबंध थे। औरंगजेब शिवाजी को कैद करने की ताक में रहता था और अंततः उन्हें कैद कर लिया गया।
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कैदखाने में रहते हुए, शिवाजी ने एक योजना बनाई और अपने दो सेवकों के साथ वहां से भाग निकले। भागते-भागते वे मुर्शिदाबाद पहुंचे, लेकिन थकान के कारण बीमार पड़ गए।
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शिवाजी और उनके सेवक एक ग्रामीण विनायकदेव के घर ठहरे, जो एक भोला और सज्जन व्यक्ति था। विनायकदेव शिवाजी की पहचान से अनजान थे और अपनी गरीबी के बावजूद उनकी खूब सेवा की।
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शिवाजी ने विनायकदेव की गरीबी देखी और उनकी मदद करने का निर्णय लिया। इस बीच, औरंगजेब ने शिवाजी की गिरफ्तारी के लिए पाँच हजार स्वर्ण मुद्राओं का इनाम घोषित किया।
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शिवाजी ने विनायकदेव को इनाम दिलाने के लिए एक पत्र लिखा जिसमें वे अपनी मौजूदगी की सूचना दे रहे थे। विनायकदेव ने भोलेपन में वह पत्र मुगल सूबेदार को दे दिया।
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सूबेदार ने विनायकदेव को इनाम दिया और शिवाजी को गिरफ्तार कर लिया। शिवाजी के सेवक तानाजी ने स्थिति को समझा और विनायकदेव को सच्चाई बताई।
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तानाजी ने विनायकदेव को सलाह दी कि वे इनाम की राशि का उपयोग करके कुछ लोगों को भाड़े पर लें और शिवाजी को छुड़ाने की योजना बनाएं।
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विनायकदेव और तानाजी ने मिलकर योजना बनाई और मुगल सूबेदार पर हमला किया। युद्ध के बाद सूबेदार मारा गया और शिवाजी को मुक्त कर लिया गया।
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शिवाजी को मुगल टुकड़ी का बहुत सारा सामान भी मिला। विनायकदेव ने शिवाजी से माफी मांगी और शिवाजी ने उन्हें सांत्वना दी।
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अंततः शिवाजी अपने राज्य में लौट गए और विनायकदेव के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की।
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