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पंडित रामगुनी को होली के त्यौहार से नफरत थी और वे इसे गंवारों का त्यौहार मानते थे, इसलिए हर साल इस दिन वे खुद को कमरे में बंद कर लेते थे।
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होली के दिन एक डाकिया रामगुनी जी के दरवाजे पर आया और मनीआर्डर का बहाना बनाकर उन्हें दरवाजा खोलने के लिए मनाया।
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डाकिये ने रामगुनी जी को 2500 रुपये के नकली नोट दिए, जिसमें कैमिकल लगा था जो उनके हाथ और चेहरे को रंगीन कर गया।
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पंडित जी और उनकी पत्नी ने नोटों को असली समझा लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि वे ठगे गए हैं।
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अगले दिन, पड़ोसियों ने रामगुनी जी के दरवाजे पर इकट्ठा होकर उनकी खैरियत पूछी, लेकिन रामगुनी जी ने दरवाजा नहीं खोला।
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एक शरारती लड़के ने फिर से मनीआर्डर का नाम लेकर उन्हें बाहर आने के लिए उकसाया, जिससे रामगुनी जी को समझ आया कि यह सब एक शरारत थी।
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रामगुनी जी गुस्से में एक डंडा लेकर बाहर निकले, लेकिन लड़के पहले ही भाग चुके थे, और पड़ोसियों ने रामगुनी जी का रंगा हुआ चेहरा देखकर हंसी उड़ाई।
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यह कहानी हास्यपूर्ण तरीके से होली की मस्ती और शरारतों को दर्शाती है,
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जो पंडित रामगुनी जैसे गंभीर व्यक्ति को भी रंगीन बना देती है।
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